कम होती बर्फबारी और सिकुडते ग्लेशियरों के कारण स्पीति के कई गांव के किसान खेती को लेकर चिंतित
शीत मरूस्थल के नाम से पहचाने जाने वाले दुनिया के सबसे उंचे गांवों चिचम, लालूंग, किब्बर, कौमिक और लांगजा में जलवायु परिवर्तन का असर देखने को मिल रहा है। हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी में समुद्र तल से 3500-4500 मीटर तक की उंचाई पर बसे इस अति दुर्गम स्थल के किसानों के लिए पानी की कमी के चलते खेती करना मुश्किल हो गया है। साल में केवल एक क्रापिंग सीजन में खेती करने वाले किसानों के पास पानी की उचित व्यवस्था न होने के चलते अब खेती छोड़ दूसरे काम धंधे को करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। गौर रहे कि इस कबाईली क्षेत्र स्पीति में 12,000 से अधिक लोग रहते हैं और 3251 किसान परिवार खेती से जुड़े हुए हैं। ऐसे में पर्यावरण में आ रहे बदलावों और घटती बर्फबारी के कारण इन क्षेत्रों में पानी के प्राकृतिक स्त्रोत समय से पहले सूख रहे हैं। जिसकी वजह से यहां के किसानों के पास सिंचाई के लिए पानी न होने की वजह से अपनी भूमि को बंजर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
4500 मीटर तक की उंचाई पर बसे इन गांव के किसानों के पास ग्लेशियर से पानी लाने के अलावा और कोई सिंचाई की सूविधा नहीं है। लांगजा गांव के किसानों का कहना है कि दो दशक से पहले तक ग्लेशियरों में काफी पानी होता था, जिसकी वजह से उनके पानी के स्त्रोत भरे रहते थे और खेतों में सिंचाई के लिए किसी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता था। लेकिन अब लगातार घटती बर्फबारी की वजह से ग्लेशियर जल्दी पिघल जाते हैं जिससे सिंचाई नहीं हो पाती और किसान अपनी आधी जमीन खाली छोड़ रहे हैं।
खेती छोड़ बाहरी क्षेत्रों की ओर रूख कर रहे लोग
स्पीति में पर्यावरण, जल संरक्षण और अन्य स्थानीय मुद्दों को लेकर काम करने वाली स्पीति सिविल सोसायटी के प्रवक्ता सोनम तारगे कहते हैं कि हमारे क्षेत्र में पानी का एक मात्र सोर्स ग्लेशियर ही हैं। लेकिन अब बर्फबारी कम होने की वजह से पानी की किल्लत होना शुरू हो गई है। जिसकी वजह से लोग अब गांव छोड़कर बाहर जा रहे हैं।
15 किलोमीटर दूर से ला रहे पानी
लंगजा गांव के किसानों का कहना है कि उनके गांव के लोगों ने पानी की कमी के कारण अपनी आधी जमीन की बोआई करना छोड़ दी है। लांगजा पंचायत की प्रधान छेरिंग पालडन का कहना है कि ग्लेशियरों के सिकुडने के कारण अब पानी की कमी शुरू हो गई है। उन्होंने बताया कि अब लांगजा गांव के लिए पानी 15 किलोमीटर की लंबी कुहल के माध्यम से खेतों तक पहुंचाया जा रहा है।
दुनिया के सबसे उंचाई पर सड़क सुविधा से जुड़ने वाले गांव कौमिक के तनपा छेरिंग ने बताया कि गांव में अब पानी की बहुत ही अधिक कमी देखने को मिल रही है। वे कहते हैं कि हमारे यहां न ही तो बारीश होती है और न ही हमारे यहां कोई सरकार की ओर से सिंचाई की लिफ्ट स्कीम है, हम पूरी तरह ग्लेशियर के पानी के उपर निर्भर हैं। लेकिन अब कम बर्फबारी होने की वजह से ग्लेशियरों में ज्यादा बर्फ नहीं होती और वे जल्द ही पिघल जाते हैं। जिससे अब उन्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
कौमिक और डेमूल गांव के किसान छेरिंग आंगदूई, छेरिंग टकपा, आंगद्वी, राकेश और छेरिंग फूंन्सूक का कहना है कि हमारे यहां बर्फबारी कम होने की वजह से अब हम आधे खेतों को खाली छोड़ दे रहे हैं। अब हमारे क्षेत्र में गर्मी भी अधिक पड़ रही है। कई बार तो ऐसी स्थिति बन जा रही है कि खड़ी फसलों के लिए पानी न होने की वजह से वे खेत में ही सूख जा रही हैं और हम अपने आप को लाचार महसूस कर रहे हैं।
कौमिक गांव के नंबरदार केसंग का कहना है कि खेतों के लिए तो पानी की कमी हो रही रही है साथ में लोगों को अब अपने पशूओं को चारा उपलब्ध करवाने के लिए कई किलोमीटर तक का सफर करना पड़ रहा है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि सरकार उनके क्षेत्र में लेह लद्दाख की तर्ज पर आर्टिफिशियल ग्लेशियर बनाने की दिशा में सोचे साथ ही चैकडैम बनवाए जाने चाहिए ताकि पानी का बचाया जा सके।
विकासखंड काजा में कृषि विभाग में कार्यरत खंड तकनीकी प्रबंधक सूजाता नेगी का कहना है कि स्पीति रिजन में ज्यादादर किसान अब पानी की कमी से जुझ रहे हैं। इसलिए किसानों को कम पानी में भी अच्छी उपज देने वाली सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि कि क्षेत्र के 201 किसानों ने इस खेती विधि को अपनाया है। इसमें पहले से प्रचलित पारंपरिक खेती के मुकाबले बहुत कम पानी का प्रयोग होता है। इसलिए किसान इसे अपना रहे हैं।
पर्यावरण सरंक्षण और किसानों के लिए काम करने वाली संस्था इकोस्फेयर की अध्यक्ष शिवानी का कहना है कि स्पीति रिजन के कई क्षेत्रों में पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। पानी की सबसे अधिक कमी सबसे उंचाई वाले क्षेत्रों में देखी जा रही है। इसके लिए संस्था की ओर से सोलर पंप लगाने का काम किया जा रहा है ताकि लोगों को पीने का पानी तो उपलब्ध हो सके।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के सहयोगी रहे कुलभूषण उपमन्यु का कहना है कि पर्यावरण में आ रहे बदलावों को समझने की जरूरत है और सरकारों का चाहिए कि वे पर्यावरण में आ रहे बदलावों को देखते हुए निति का निर्माण करे। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में घटती बर्फ और बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए सरकारों को सत्त विकास की दिशा में कदम उठाना चाहिए।