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हिमाचल में बढ़ रहे लम्पी स्कीन रोग के मामले

लम्पी स्कीन रोग के लिए स्वदेशी वैक्सीन

मानव और जानवर का साथ सदियों से है और सदियों से ही ये दोनों एक दूसरे के काम आ रहे हैं। हमारे देश में पशुधन का बहुत महत्व है और अब जब हाल ही में भारत के गौवांशों में गाँठदार त्वचा रोग या लंपी स्किन डिजीज़ के संक्रमण के मामले देखने को मिले हैं। जो की भारत में पहली बार दर्ज किये गये है। भारत जिसके पास दुनिया के सबसे अधिक लगभग 303 मिलियन, मवेशी हैं में बीमारी सिर्फ 16 महीनों के भीतर 15 राज्यों में फैल गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि मवेशियों या जंगली भैंसों में यह गाँठदार त्वचा रोग वायरस के संक्रमण के कारण होता है। यह संक्रमित मवेशियों से अन्य स्वाथ्य मवेशियों में फैलता है। लंपी स्किन डिजीज का प्रकोप हिमाचल में भी दिखने लगा है। पिछले 3 सप्ताह में प्रदेश में लंपी स्किन डिजीज के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। सरकारी आंकडों के मुताबिक अभी तक 1000 जानवर इस बीमारी से पशु प्रभावित हो चुके हैं। लंपी स्किन डिजीज के पहले मामले की पूष्टी 26 जुलाई को शिमला के चायली में हुई थी और अभी तक इस बीमारी की वजह से 58 गायों की जान जा चुकी है। लंपी स्किन डिजीज से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र पड़ोसी राज्यों के साथ सीमा साझा करने वाले सिरमौर, सोलन और ऊना जिला है।

ऊना जिला में लंपी स्किन डिजीज के 230 मामले सामने आ चुके हैं जिनमें से 4 पशुओं की मौत हो चुकी है। इनमें से ज्यादातर मामले पंजाब के साथ सटे गगरेट क्षेत्र से हैं। इसके अलावा ऊना ब्लॉक में भी ज्यादा मामले देखने को मिले हैं। बीमारी की गंभीरता को देखते हुए हिमाचल प्रदेश में पशुपालन विभाग के कर्मचारियों की छुट्टियों को रद्द कर दी गई हैं। वहीं हरियाणा के साथ बार्डर साझा करने वाले सिरमौर क्षेत्र में भी लंपी स्किन डिजीज के कई मामले देखे गए हैं। हिमाचल प्रदेश में यह बीमारी गायों में देखी गई है और पशु गणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश में गायों की संख्या 28 लाख के करीब है।

देश में तेजी से फैल रहे इस रोग से निपटने के लिए सभी राज्यों में पशु चिकित्सक डटे हुए हैं, और ऐसे समय में देश के पशुधन के लिए बड़ी राहत प्रदान करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पशुओं को लम्पी स्किन रोग से बचाव के लिए बुधवार को स्वदेशी वैक्सीन (लम्पी-प्रो वैक-इंड/) लॉन्च की। यह वैक्सीन राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा) ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) के सहयोग से बनाई है। तोमर ने इस वैक्सीन को लम्पी बीमारी के निदान के लिए मील का पत्थर बताते हुए कहा कि मानव संसाधन के साथ ही पशुधन हमारे देश की बड़ी ताकत है, जिन्हें बचाना हमारा बड़ा दायित्व है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत यह वैक्सीन विकसित करके एक और नया आयाम स्थापित किया गया है। अश्व अनुसंधान केंद्र व पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के प्रयासों ने लम्पी रोग के टीके को विकसित करके देश ही नहीं दुनिया भर में फैले इस रोग के उपचार के लिए एक नई दिशा दिखाई है।

इस वैक्सीन को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल लम्पी रोग राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, गुजरात और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में फैली हुई है. वैज्ञानिकों ने लम्पी रोग की चुनौती को स्वीकार किया और कम समय में सीमित परीक्षण में सभी मानक स्तर पर शत-प्रतिशत कारगर वैक्सीन विकसित की है। जो लम्पी बीमारी से निजात दिलाने में असरकारी होगी। अब पशुओं को राहत के लिए यह वैक्सीन जल्द से जल्द बड़ी तादाद में मुहैया कराई जाएगी। देश में तीस करोड़ पशुधन हैं, मूक पशुओं की तकलीफ समझकर उन्हें शीघ्र अतिशीघ्र राहत देने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे।

पीएचडी इन रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी डॉ सुशील सूद का कहना है कि जिन पशुओं को वैक्सीन नहीं लगी है वह ज्यादा संवेदनशील हैं। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की ऐसी धारणा है कि वैक्सीन लगाने से जानवर दूध कम देता है जिसके चलते लोग वैक्सीनेशन कम करवाते हैं। जबकि ऐसा नहीं है कुछ दिनों के बाद जानवर उतना ही दूध देना शुरू कर देता है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज जूनोटिक है और इसके मनुष्यों में भी फैलने का भय है हालांकि ऐसा मामला अभी तक सामने नहीं आया है फिर भी इसमें सावधानी बरतने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि यह मच्छरों, मक्खियों और जूँ के साथ पशुओं की लार तथा दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से फैलता है।

पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ अविनाश शर्मा का कहना है कि लंपी स्कीन रोग के पहले मामले की पुष्टी के बाद ही विभाग ने एहतियातन पूरे विभाग के कर्मचारियों को सतर्क कर दिया था और अभी जिन जिन क्षेत्रों में इस रोग के मामले देखने को मिले हैं वहां पर वैक्सीनेशन का काम जोरों पर किया जा रहा है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि लोग घरेलू इलाज न करें और यदि पशुओं में लम्पी स्किन डिजीज के कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं तो पशु चिकित्सकों के पास जाएं।

वहीं महामारी विज्ञान के उप निदेशक डॉ अरूण सरकैक का कहना है कि प्रदेश लंपी स्किन डिजीज के बढ़ते मामलों को देखते हुए रेपीड एक्शन टीमों का गठन किया गया है। जिन क्षेत्रों में इस बीमारी के मामले देखे गए हैं वहां के 5 किलोमिटर के दायरे में वैक्सीनेशन का काम किया जा रहा है। इसके अलावा उस क्षेत्र को संवेदनशिल घोषित किया गया है।

लंपी स्कीन रोग के लक्षण

यह पूरे शरीर में विशेष रूप से सिर, गर्दन, अंगों, थन, मादा मवेशी की स्तन ग्रंथि और जननांगों के आसपास दो से पाँच सेंटीमीटर व्यास की गाँठ के रूप में प्रकट होता है। यह गाँठ बाद में धीरे.धीरे एक बड़े और गहरे घाव का रूप ले लेती है। इसके अन्य लक्षणों में सामान्य अस्वस्थता आँख और नाक से पानी आना बुखार तथा दूध के उत्पादन में अचानक कमी आदि शामिल है। इसके अलावा पशु की खाने की क्षमता भी कम हो जाती है।

रोकथाम

गाँठदार त्वचा रोग का नियंत्रण और रोकथाम चार रणनीतियों पर निर्भर करता है जो निम्नलिखित हैं .

आवाजाही पर नियंत्रण ;क्वारंटीन, टीकाकरण, संक्रमित पशुओं का प्रबंधन।

इस वायरस के लिए टीकाकरण ही रोकथाम व नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन है।

यदि लक्षण दिखाई दे तो त्वचा में द्वितीयक संक्रमणों का उपचार गैर. स्टेरॉयडल एंटी .इंफ्लेमेटरी और एंटीबायोटिक दवाओं के साथ किया जा सकता है

गौर रहे कि हिमाचल प्रदेश कृषि और बागवानी राज्य है और यहां साढे नौ लाख किसान बागवान प्रदेश की जीडीपी में 13 फीसदी का योगादान देते हैं। ऐसे में खेती और बागवानी की रिढ़ गाय है और गायों में फैले इस रोग से यहां के किसान बागवान चिंतीत है। इसलिए किसान-बागवानों ने सरकार से इस बीमारी पर शिघ्र रोकथाम के लिए प्रभाव कदम उठाने की गुहार लगाई है साथ ही सभी जानवरों की वैक्सीनेशन की भी अपील की है। इसके अलावा स्वेदशी वैक्सीन के आने से पशुधन पालकों को एक आशा की किरण नजर आई है और पशुधन पालकों ने इस वैक्सीन का जल्द गांव स्तर तक पहुंचाने की मांग की है।

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