लीना शर्मा की जिद ने गांव को रसायन मुक्त बनाकर, किसानों की आर्थिकी में लाया सुधार
एक बेटी, एक बहन, एक पत्नी, एक बहु, एक मां, एक साथी, सहेली, सास और न जाने कितने किरदारों को निभाने वाली एक महिला समाज में बहुत बदलाव ला सकती है, यदि इन बदलावों को देखना हो तो इसे आप हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव पंज्याणू में देख सकते हैं। हिमाचल के मंडी जिला का छोटा सा गांव पंज्याणू आज एक महिला की जिद के बदौलत पुरी तरह रसायन मुक्त गांव बन चुका है। यह लीना शर्मा की मेहनत का ही नतीजा है कि आज पंज्याणू गांव को न सिर्फ हिमाचल बल्कि देशभर में प्राकृतिक खेती गांव के रूप में पहचाना जाता है। स्नात्कोतर तक पढ़ाई करने के बाद पंज्याणू गांव कि युवा किसान लीना शर्मा भी अन्य किसानों की तरह पंरम्परागत खेती कर रही थी, लेकिन खेती में लगातार बढ़ती लागत और स्वास्थ्य सबंधी दिक्कतों से तंग आकर लीना ने जैविक खेती की ओर रूख किया। लेकिन थोड़े ही समय में जैविक खेती का मोह तब भंग हो गया, जब उन्हें इसके लिए भी बाजार से जैविक उत्पादों को खरीदना पड़ा। इसके बाद लीना शर्मा ने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी जुटाई और इसे करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने इस खेती विधि के जनक पद्मश्री सुभाष पालेकर से शिमला में आकर 6 दिन का प्रशिक्षण लिया।
प्रशिक्षण लेने के बाद लीना शर्मा इतने उत्साह में आ गई कि उन्होंने पहले अपने खेतों में परीक्षण के तौर पर शुरू किया और इसके बाद बेहतर परिणाम पाने के बाद अपने समूह और पूरे क्षेत्र के किसानों तक पहुंचाने का बीड़ा उठा लिया है।
लीना शर्मा ने स्वयं सहायता समूह कमरूनाग बनाया है, जिसमें 20 महिलाएं सदस्य हैं। इस ग्रुप की सभी महिलाएं रसायनों को त्यागकर प्राकृतिक खेती करती हैं। इसके अलावा इस ग्रुप ने पुराने बीजों को संजोकर रखने के लिए भी एक महत्वपूर्ण पहल की है।
लीना शर्मा बताती हैं कि उनके क्षेत्र में लोग व्यवसायिक खेती करते हैं और ज्यादातर लोगों की आजीविका का मुख्य साधन खेती ही है। उनका मानना है कि किसान मेहनत तो बहुत करता है, लेकिन उनकी आर्थिकी बेहतर नहीं हो पा रही थी। इसलिए मैं अब किसानों को सस्ती और टिकाऊ खेती के बारे में प्रशिक्षण देती हूं। लीना शर्मा बताती हैं कि पहले जब मैं लोगों को कम लागत वाली प्राकृतिक खेती के बारे में बताती थी, तो वो मुझे गंभीरता से नहीं लेते थे। इसलिए मैनें पहले अपने खेत में एक मॉडल खड़ा किया और इसमें प्रयोग होने वाले हरेक आदान को अपने ग्रुप के सदस्यों के सामने बनाकर खेत में प्रयोग करके बताया। साथ ही खेती में प्रयोग होने वाले खर्चे को भी लिखती रही। जब लोगों ने मेरे खेत में खड़े किए मॉडल के परिणामों को देखा तो वो दंग रह गए। मैंने लोगों को अपने खेत दिखाने के साथ अपना लेखा-जोखा भी दिखाया। इसके बाद मैंने लोगों को उनके घरों में जाकर प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले आदान जैसे जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत और कीट व रोगनाशी दवाईयां बनाना सीखाया और इनका प्रयोग कैसे करना है यह भी बताया। इसके अलावा लीना ने अपने क्षेत्र में होने वाली एक फसलीय खेती के नुकसान और मिश्रित खेती के फायदों के बारे में भी एक जागरूकता अभियान चलाया है
जो अभी भी जारी है। लीना किसानों को बताती हैं कि मिश्रित खेती में कैसे किसान एक फसल के खराब हो जाने पर दूसरी फसल से लाभ कमा सकता है, वहीं एक साथ दूसरी फसलें लगाने से किस तरह खरपतवारों से बचना और मुनाफे को बढ़ाया जा सकता है। लीना बताती हैं कि इस प्राकृतिक खेती विधि में बाजार से कुछ भी नहीं लाना होता है। खेती में प्रयोग होने वाले सारे आदान देसी गाय के गोबर और गोमूत्र और कुछ स्थानीय संसाधनों से तैयार हो जाते हैं। इसलिए मैं लोगों को खुद के तैयार किए हुए आदान भी प्रयोग के लिए देती थी। उन्होंने बताया कि मेरे इस काम में मेरे पति ने भी भरपूर साथ दिया है। उन्होंने बताया कि कई बार अधिक लोगों को खेती आदान देने होते थे तो मैं अपने पति से दूसरे गांव से गोबर और गोमूत्र मंगवाकर आदान बनाती थी और इन्हें अपने साथी किसानों को प्रयोग के लिए देती थी। लीना बताती हैं कि मैं और मेरा ग्रुप अभी तक 2000 से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में प्रशिक्षण दे चुके हैं और इसमें से आधे से अधिक लोग इस खेती विधि को अपनाकर अपनी आर्थिकी में सुधार कर रहे हैं। इतना ही नहीं लीना ने कोरोना काल में ऑनलाइन माध्यम से कई किसानों को प्राकृतिक खेती विधि के बारे में न सिर्फ प्रशिक्षण देकर इस खेती विधि को सिखाया बल्कि जब-जब इन किसानों को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना करना पड़ा तो वे हमेशा खड़ी रही और
उन्हें बीमारी आने पर कौन सी दवाई प्रयोग में लानी है इसके बारे में पूरी जानकारी भी दी। लीना शर्मा कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर अपने ब्लॉक और जिला के किसानों को प्रशिक्षण देने का काम कर रही हैं। इसके लिए उन्हें विभाग की ओर मास्टर ट्रेनर भी बनाया गया है। साथ ही वह किसानों को अपने खेतों में बुलाकर उन्हें अपने खेतों में खड़े
किए हुए मॉडल भी दिखाती हैं ताकि किसान देखकर प्रेरित हो सके। इसके अलावा लीना और उनका समूह सरकार की ओर से चलाई गई प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना से मिलने वाले अनुदानों, जैसे देसी गाव, गौशाला को पक्का करने के लिए मिलने वाली राशि और संसाधन भंडार के बारे में भी अवगत करवाती हैं ताकि किसानों को सरकार की इस
योजना का लाभ मिल सके।
लीना शर्मा व्हट्सअप ग्रुप के माध्यम से भी अपने ग्रुप और जिला के अन्य किसानों के साथ जुड़ी हुई होती हैं और किसानों के साथ किसानों से जुड़ी सुचनाओं को सांझा करने के साथ किसी प्रकार की दुविधा होने पर प्राकृतिक खेती विधि में बताए हुए आदानों के आधार पर उस दुविधा का निवारण करती हैं।
पंज्याणू गांव और जिला के अन्य गांव के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी लीना शर्मा को किसानों के हितों के लिए उनकी ओर से किए गए कार्यों के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार, हिमाचल के पूर्व राज्यपाल और वर्तमान में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और हिमाचल के मुख्यमंत्री से सराहना मिल चुकी है। इतना ही नहीं प्राकृतिक खेती विधि के जनक सुभाष पालेकर भी उनके प्रयासों की सराहना कई मंचों में कर चुके हैं।
इसके अलावा उन्हें 2019 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आयोजित जिला स्तर के कार्यक्रम में प्राकृतिक खेती के प्रचार प्रसार के लिए प्रशस्ति पत्र मिल चुका है। वहीं कई निजी संस्थाएं भी लीना को किसानों के उत्थान के लिए किए गए कार्यों के लिए विभिन्न मंचों में सम्मानित कर चुकी हैं। लीना से प्रेरणा पाकर प्राकृतिक खेती करने वाली महिला किसान ममता शर्मा, कांता शर्मा, मीना शर्मा, हेमलता शर्मा, उषा और सत्या कौंडल ने बताया कि इस खेती विधि से न सिर्फ हमारी खेती लागत में कमी आई है, बल्कि इससे हमें पोषणयुक्त स्वादिष्ट आहार भी खाने को मिल रहा है। इन महिला किसानों ने बताया कि वे बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन करती हैं और इन सब्जियों को दिल्ली और अन्य राज्यों को भेजती हैं। उन्होंने बताया कि जब से प्राकृतिक खेती विधि से उगाई हुई सब्जियों को बाजार में भेज रही हैं, तब से उन्हें आढतियों की ओर से कोई शिकायत नहीं मिल रही है और वे हमारी सब्जियों की क्वालिटी से बेहद खुश हैं।
लीना की इस मुहिम से न सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष किसान भी बेहद खुश हैं और अच्छी क्वालिटी का उत्पाद पैदा कर अधिक मुनाफा भी कमा रहे हैं। लीना शर्मा का कहना है कि उन्होंने केवल अपने परिवार की आर्थिकी और स्वास्थ्य को सुदृढ करने के लिए इस खेती विधि को अपनाया था, लेकिन ये कब जन-जन तक पहुंच गई इस बात का पता ही नहीं चला। उन्होंने बताया कि मैनें तो केवल एक मॉडल खड़ा किया था, लेकिन लोगों को यह फायदे का सौदा लगा और वे इसे अपनाते चले गए। अब मैं इस खेती विधि को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रही हूं। इसके लिए अब मेरा ग्रुप भी पूरा सहयोग कर रहा है। लीना शर्मा का कहना है कि अब हम अपने गांव के साथ लगते गांव में अच्छे मॉडल खड़े कर रहे हैं ताकि लोग इन मॉडल को देखकर अन्य किसान भी इस खेती विधि के प्रति आकर्षित हो सकें। इसके अलावा उन्होंने बताया कि वे इस खेती विधि का कोई भी प्रशिक्षण किसी बंद कमरे या हॉल में नहीं करवाते हैं, बल्कि किसी किसान के खेत में करवाते हैं, ताकि किसान-बागवान इस खेती विधि को देखकर सीख सकें। इस तरीके से अधिक से अधिक किसान इस खेती विधि को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं। लीना अन्य किसानों को सलाह देती हैं कि वे प्राकृतिक खेती विधि को अपने छोटे से खेत में प्रयोग के तौर पर जरूर शुरू करें और इसमें जो आदान बताए गए हैं, उन्हें प्रयोग में लाएं और जब इसके बेहतर परिणाम मिलेंगे तो इसे अपनी पूरी भूमि में अपनाएं। लीना का सपना है कि हम अपने प्रदेश को पूरे देश में प्राकृतिक खेती राज्य की ओर अग्रसर हो रहे हैं और जल्द ही हिमाचल प्रदेश पूरे देश में प्राकृतिक खेती राज्य के रूप में पहचान पाने जा रहा है।