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आईटी इंजीनियर ने गांव लौटकर जीरो टिलेज  तकनीक से खेती की शुरू, सालाना 10 लाख की कमाई

पर्यटन नगरी धर्मशाला के डिकडु गांव के रहने वाले शक्ति देव ने बीटेक की डिग्री पूरी कर आईटी क्षेत्र की नामी कंपनी विप्रो में तीन साल तक काम किया। फिर नौकरी छोड़कर गांव लौटकर अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती बाड़ी की शुरुआत की और अब जीरो टिलेज  कॉन्सेप्ट व प्राकृतिक खेती विधि से किसानों को परामर्श देने का काम भी कर रहे हैं। शक्ति देव अपने 12 बीघा के फार्म में 10 तरह के फल और 15 तरह की सब्जियों और फसलों के साथ फूलों से सालाना 10 लाख रूपये से अधिक की कमाई कर रहे हैं।

पढ़ाई के बाद, शक्ति साल 2012 में वह अपने गांव आ गए और यहाँ आकर पहले तो जैविक खेती शुरू की। अनिल बताते हैं कि जब मैं नौकरी में लगा तो पहले दो वर्षों तक तो मैं अपने घर से खर्चा मंगवाता रहा, लेकिन जब शहर में मेरे खर्चे और बढ़ते रहे और कमाई में कोई खासी बढ़ोतरी नहीं थी तो मुझे समझ में आ गया कि यहां मेरा गुजारा नहीं हो सकता और मैं ज़मीनी स्तर पर काम करना चाहता हूँ। इसलिए मैंने सब छोड़-छाड़ घर में खेती करने का फैसला लिया। शक्ति बताते हैं कि नौकरी छोड़ने के बाद जब मैं घर आया तो घरवालों ने मेरा विरोध किया, लेकिन मैं पूरा मन बना चुका था कि करूंगा तो खेती ही और अब मुझे नौकरी नहीं करनी है।

नौकरी छोड़ने के बाद शक्ति देव ने रसायनों का प्रयोग न करने का फैसला लिया और अपने आम के बाग और जमीन में जैविक विधि से खेती करना शुरू किया जिसमें उनकी लेबर कॉस्ट बहुत बढ़ गई, लेकिन कमाई घट गई। शक्ति लगातार तीन वर्षों तक घाटे के बावजूद भी खेती-बाड़ी के काम में लगे रहे। शक्ति बताते हैं कि इसके बाद मैंने जीरो टिलेज  कॉन्सेप्ट को अपनाया, जिससे मेरी लेबर कॉस्ट शून्य हो गई।

जीरो टिलेज कॉन्सेप्ट

जीरो टिलेज कॉन्सेप्ट में किसान को अपने खेत बुआई के दौरान हल चलाकर जोताई नहीं करनी पड़ती। इसमें किसान बिना खेत की जोताई किए केवल बीज को मिटटी में डालता है और खेत की पूरी जमीन को या तो अन्य फसलों से भर कर रखता है या फिर सूखे घास फूस से ढका कर रखता है। इससे मिट्टी में नमी बरकरार होने से खेत की मिट्टी नर्म बनी रहती है जिसमें जोताई करने की जरूरत नहीं रहती। इस कॉन्सेप्ट से खेत में बार बार हल चलाने के लिए न ही लेबर लगती है और यदि पावर टिल्लर का प्रयोग करते हैं तो इससे ईंधन के पैसे भी बचते हैं।

फसल विविधिकरण से बढ़ा मुनाफा

शक्ति देव बताते हैं कि शुरूआत में केवल दो चार तरह की सब्जियां और फसलें ही ले रहा था, लेकिन बाद में मैंने अपने खेतों में कई तरह के फल व सब्जियां लगानी शुरू की जिससे मुझे थोड़े-थोड़े समय में आमदनी होने लग गई। मैं अपने खेतों में गोभी, आलू, मटर, बीन, शिमला मिर्च, भिंडी, बैंगन, पालक और अन्य और तरह की मौसमी सब्जियां लगाता हूं। इसके अलावा मेरे पास, आम, लीची, किवी, अंगूर, पपीता, नींबू, संतरा, मौसमी, अमरूद और चीकू फल के पौधे हैं। इन पौधों में किसी भी तरह के रसायनों का प्रयोग नहीं करता। मैं अपने खेतों में खर्च कम करने के लिए प्राकृतिक खेती विधि को अपना रहा हूं। इससे भी मेरी कृषि लागत बहुत कम हो गई है।

पांच स्तरीय मॉडल पर भी काम

शक्ति देव अपने फार्म में पांच स्तरीय कृषि मॉडल पर भी काम कर रहे हैं। वे बताते हैं कि वे एक समय में जमीन के नीचे उगने वाली फसलें जैसे आलू, मूली, गाजर लगाते हैं इसके बाद ऊपर उगने वाली छोटी ऊंचाई वाली फसलें जैसे धनिया, पालक आदि लेता हूं। इसके बाद मैं गुलाब के फूलों की खेती भी करता हूं और इसके बाद धीया, तोरी, खीरा और बेल वर्गीय फसलें लेता हूं। सबसे ऊपर मैं पपीते की पैदावार लेता हूं। इस तरह मैं एक समय में एक छोटे से खेत में पांच तरह की फसलें ले पाता हूं।

शक्ति देव ने अपने फार्म में उगने वाली फसलों और फलों की मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है। उन्होंने 100 उपभोक्ताओं का एक व्हाटसअप ग्रुप बनाया है, जिसमें वे उपभोक्ताओं की मांग तो लेते ही हैं साथ में अपने खेतों में तैयार सब्जियों, फसलों और फलों की मात्रा के बारे में भी जानकारी देते रहते हैं जिससे लोग उनके खेत से ही सारा सामान लेकर चले जाते हैं और उन्हें मंडी के ऊपर निर्भर नहीं होना पड़ता है।

शक्ति देव कृषि विभाग की ओर से किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उठाते रहते हैं। शक्ति ने कृषि विभाग की सहायता से 300 वर्ग मीटर का पॉलीहाउस भी स्थापित किया है। कृषि विभाग के जिला परियोजना निदेशक आतमा डॉ शशि पाल अत्री का कहना है शक्ति देव अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत का काम कर रहे हैं। इनकी ओर से खड़े किए मॉडल को हम अन्य किसानों को भी दिखाते हैं ताकि अन्य किसान भी इनसे प्रेरित होकर कृषि क्षेत्र में आगे बढ़ सकें।

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