जलवायु परिवर्तन के चलते वनों पर पड़ते प्रभावों और देश में बढ़ रही लकड़ी की मांग के चलते वनों के कुशल प्रबंधन को लेकर एचएफआरआई की ओर से देश के 9 राज्यों के 12 आईएफएस अधिकारी के लिए शिमला में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पांच दिनों तक चले इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान अधिकारियों को एचएफआरआई के विशेषज्ञों द्वारा कुशल कीट प्रबंधन, पर्यावरण अनुकूल नियंत्रण उपायों, संस्थान की ओर से तैयार की गई पेड़ पौधों की नई किस्मों, पेड़ पौधों में पाई जाने वाली बीमारियों के उपचार के लिए बनाई गई नई दवाओं समेत अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गई।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि, डॉ. राजीव कुमार, पीसीसीएफ और HOFF, हिमाचल प्रदेश राज्य वन विभाग ने कहा कि हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों और शंकुधारी पेड़ों के कीड़ों के प्रबंधन में अच्छा काम कर रहा है। संस्थान ने कुछ वन्य जीवन अभयारण्यों और आर्द्रभूमियों सहित राजगढ़, झुंगी, चायल और शिमला, कुल्लू और चंबा के वन क्षेत्र में होने वाली कुछ क्षेत्रीय समस्याओं का भी समाधान किया है। उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा सैलिक्स, पॉपलर सहित शीत मरुस्थलीय वृक्ष प्रजातियों के कीट-पतंगों के क्षेत्र में भी कार्य किया गया है।
कार्यक्रम के अंतिम दिन की शुरुआत में एफआरआई, देहरादून के वैज्ञानिक डॉ. अरविंद कुमार ने भारत की प्रमुख कृषि वानिकी वृक्ष प्रजातियों में कीट प्रबंधन के विषय पर चर्चा की। उन्होंने कृषि वानिकी के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि पेड़ों पर प्रभाव डालने वाली 65 कीट प्रजातियां पाई गई हैं। डॉ. अरविंद ने पर्यावरण अनुकूल तरीके से कीट-पतंगों के नियंत्रण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कीटों के खतरे के प्रबंधन में रासायनिक कीटनाशक हमारा अंतिम कदम होना चाहिए।
दिन की दूसरी वार्ता में आईएफजीटीबी, कोयंबटूर के डॉ. एन. सेंथिलकुमार ने प्रतिभागियों को अपने संस्थान द्वारा विकसित जैव कीटनाशक उत्पाद के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इन जैव उत्पादों की मदद से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और पर्यावरण की सुरक्षा के अलावा कई किसानों को लाभ हुआ है। ये जैव उत्पाद सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशकों के प्रभावी विकल्प हैं और पर्यावरण अनुकूल तरीके से कीटों को नियंत्रित करने में किफायती विकल्प प्रदान करते हैं तथा कृषि और बागवानी क्षेत्र में भी काफी प्रभावी हैं।
कार्यक्रम के दौरान आईसीएफआरई-एचएफआरआई के विशेषज्ञों तथा प्रतिभागियों ने एक चर्चा सत्र में भी भाग लिया। इस दौरान वन पारिस्थितिकी तंत्र, विशेष रूप से वन कीट विज्ञान के बारे में चर्चा की गई। प्रतिभागियों ने साल बोरर, बीटल और लेपिडोप्टेरान कीटों के बारे में पर्यावरण अनुकूल नियंत्रण उपायों के बारे में पूछताछ की। उन्होंने चौड़ी पत्ती वाले कीटों के बारे में भी जानकारी ली। चूंकि 12 प्रतिभागी देश के 9 राज्यों से थे, इसलिए उन्होंने वन पारिस्थितिकी तंत्र में होने वाली अपनी-अपनी समस्याओं के बारे में पूछताछ की।
एचएफआरआई शिमला के निदेशक डॉ. संदीप शर्मा ने कहा कि हमारा संस्थान समय-समय पर हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के अधिकार क्षेत्र में कीट-कीटों की समस्याओं का समाधान करता रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि वन पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में इन कीट-पतंगों का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रतिभागियों के लिए मददगार होगा।
प्रशिक्षण कार्यक्रम डॉ. पवन कुमार के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ समाप्त हुआ, जिन्होंने सभी प्रतिभागियों और मुख्य अतिथि को बहुमूल्य सुझावों और प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद दिया।