9 जुलाई को आई बाढ़ ने न सिर्फ हमारी इस साल की मेहनत पर पानी फेरा, बल्कि इसने हमारे जीने का सहारा, हमसे हमारी जमीन ही छीन ली है। बाढ़ के पानी के साथ आए रेत, मलबे और पत्थरों ने हमारी 12 बीघा जमीन पर लगी मक्की, धान, रागी, आलू, और मौसमी सब्जियों की फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। साथ ही जो हमारी उपजाऊ भूमि थी उसके ऊपर एक फीट ऊंची रेत और पत्थरों की एक परत चढ़ गई है। यह कहना है बाढ़ से भारी नुकसान झेल रहे मंडी जिला की सिद्धपुर पंचायत के किसान रिषभ सकलानी का।
रिषभ सकलानी बताते हैं कि हमारे पुरखे सदियों से यहां खेती-बाड़ी करते आए हैं और हमने कभी न ऐसी बाढ़ देखी और न ही कभी ऐसी बाढ़ के बारे में सुना था। इस बार जो बाढ़ आई थी उससे हमारे जीने का सहारा हमारी जमीनें ही छिन गई हैं। वे बताते हैं कि कुछ जमीन तो नदी की धारा के साथ बह गई है। वहीं खेतों में रेत और पत्थरों की परत चढने से अब इसका उपजाऊपन भी खत्म हो गया है। यदि हम इसमें से रेत और पत्थरों को हटाते भी हैं तो वे फसलें या उतना उत्पादन नहीं ले सकेंगे जितना की पहले लेते थे।
कुछ ऐसा ही कहना है ब्यास नदी के किनारे बसे मंडी जिला के स्योह गांव की किसान निशा कुमारी का। निशा कुमारी की 4 बीघा जमीन बाढ़ की चपेट में आई है। इसके साथ ही बल्ह इलाके में बनाई हुई उनकी गौशाला भी बाढ़ की चपेट में आने से क्षतिग्रस्त हो गई है। निशा कुमारी बताती हैं कि हमारे खेत अब रेत, प्लास्टिक, लकड़ी और अन्य निर्माण सामग्री के मलबे से भरे हुए हैं। खेतों के ऊपर एक परत चढ़ गई है जिसे हटाने के लिए लाखों रूपये का खर्चा आएगा। निशा बताती हैं कि बल्ह क्षेत्र में लगभग दो दर्जन परिवारों की फसलें और जमीनें बाढ़ की भेंट चढ़ गई हैं। इससे किसानों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
रिषभ के अलावा सिद्धपुर पंचायत के 40 के करीब किसानों की जमीनें बाढ़ की चपेट में आई हैं। पंचायत के उप प्रधान लेखराज पालसरा ने बताया कि बाढ़ की वजह से किसानों का भारी नुकसान हुआ है और आगे उनके सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है। उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि किसानों को जल्द मुआवजा दिया जाए।
8 और 9 जुलाई को हुई भारी बारिश के कारण मंडी जिला में किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। कृषि विभाग की ओर से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार मंडी जिला में कृषि योग्य 1002 हैक्टेयर भूमि को नुकसान हुआ है। यदि प्रदेश की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश की वजह से 30,000 हैक्टेयर भूमि को नुकसान पहुंचा है। इसके साथ अगर फसलों के नुकसान को भी जोड़ दें तो प्रदेश के कृषि क्षेत्र को इस मानसून सीजन में अभी तक 335 करोड़ रूपये का नुकसान पहुंच चुका है।
जिन लोगों की जमीनें बाढ़ की चपेट में आई हैं उन्हें सरकार की ओर से अभी तक किसी भी तरह का मुआवजा नहीं दिया गया है, हालांकि प्रदेश सरकार की ओर से इस बार मुआवजे की राशि को पांच से 10 गुना तक बढ़ाया गया है। लेकिन जिन किसानों की जमीनें ही छिन गई हैं उनके लिए यह मुआवजा भी खासा असर नहीं डालेगा।
कृषि विशेषज्ञ और किसान पदमश्री नेकराम शर्मा कहते हैं कि बारिश और बाढ़ से किसानों को भारी नुकसान पहुंचा है। वे बताते हैं कि नदी नालों में बाढ़ के बाद खेतों में आए मलबे से मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होगी और किसानों को लंबे समय तक इसके दुष्परिणाम झेलने पड़ेंगे।
पर्यावरणविद अश्वनी शर्मा का कहना है कि पहाड़ों में अवैज्ञानिक तरीके से बड़ी अंधाधुंध निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि अबकि बार जो बाढ़ आई है उसमें एक नई चीज देखने को मिली है वह है पानी के साथ भारी मात्रा में निर्माण सामग्री का बह कर आना। उन्होंने बताया कि बाढ़ में निर्माण सामग्री के आने से नुकसान बहुत अधिक बढ़ जाता है। पहाड़ों में निर्माण को लेकर राज्य सरकार को समीक्षा कर नियम तय करने होंगे।
हिमाचल प्रदेश के कृषि सचिव राकेश कंवर कहते हैं कि बाढ़ और भारी बारिश की वजह से फसलों और खेती योग्य भूमि को भारी नुकसान पहुंचा है। इसकी विस्तृत रिपोर्ट बनाने के लिए अधिकारियों को फील्ड पर उतारा गया है। जिन किसानों की भूमि का नुकसान हुआ है उन्हें सरकार की ओर से तय नियमों के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा।
मौसम विभाग की ओर से आगामी दिनों में बारिश को लेकर यलो और ओरेंज अलर्ट जारी किया गया है। जिसके चलते पहले से ही बाढ़ से प्रभावित इन क्षेत्रों में बसे लोगों की चिंताएं और बढ़ गई हैं और ये लोग सहम गए हैं।