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रसायनों के प्रयोग से देसी मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट

कृषि और बागवानी में लगातार बढ़ते रसायनों के प्रयोग से देसी मधुमक्खियों की संख्या में भारी गिरावट आ गई है। मधुमक्खियों फल व फसलों की पैदावार में अहम भूमिका निभाती हैं। लेकिन बढ़ते रसायनों के प्रयोग से इनका अस्तित्व खतरें में आ गया है। जिसका असर पैदावार में गिरावट के रूप में भी देखा जा रहा है। ये देसी मधुमक्खियों की संख्या में भारी कमी का ही देन है कि अब हिमाचल के सेब बागवानी वाले क्षेत्रों में पॉलिनेशन के लिए विदेशी नस्ल की मधुमक्यिों के बक्सों को मंहगे दामों में किराए पर लेकर बागानों में रखने पर मजबूर होना पड़ रहा है। हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक पवन कुमार ने देसी मधुमक्खियों की घटती संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इन्हें संरक्षण की जरूरत है और किसान-बागवानों को इस दिशा में गंभिरता से काम करना चाहिए।

डॉ पवन कुमार ने जिला मंडी हिमाचल प्रदेश के स्वयं सहायता समूहों के बीच आजीविका सृजन के लिए मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने हेतु क्षमता निर्माण पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान किसान बागवानों को मधुमक्खियों के महत्व के बारे में जानकारी दी। इस प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान 3 वन परिक्षेत्रों झुंगी, कांगू और जयदेवी एवं 6 स्वयं सहायता समूह के 34 प्रतिभागियों ने भाग लिया। डॉ. पवन कुमार ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य, परागण एवं अन्य सेवाओं में मधुमक्खी की भूमिका के बारे में जानकारी दी। उन्होंने मधु मक्खियों के सामाजिक व्यवहार के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मधुमक्खी कॉलोनी की बीमारियों और उनके पर्यावरण-अनुकूल उपायों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने शहद मधुमक्खी प्रजातियों के आर्थिक महत्व, मधुमक्खी प्रजातियों के प्रकारों , एपिस मेलिफेरा एवं एपिस सेराना इंडिका के बारे में बताया।
उन्होंने हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक मधुमक्खी प्रजातियों के बारे में कहा कि इस प्रकार की मधुमक्खी प्रजातियों को अपने आक्रामक व्यवहार के कारण पालना बहुत मुश्किल है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 1962 में एपिस मेलिफेरा मधुमक्खी प्रजातियों का निर्यात किया था। उन्होंने कहा कि मधुमक्खी की यह प्रजाति प्रति कॉलोनी उच्च गुणवत्ता वाला शहद पैदा करने के अलावा कुछ बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी भी है।
इस दौरान सलाहकार जीका वेद प्रकाश पठानिया ने कहा कि इस प्रशिक्षण के माध्यम से हम शहद और अन्य महत्वपूर्ण मधुमक्खी उत्पादों के विपणन के माध्यम से अच्छी आय अर्जित करने के अलावा परागणकों विशेषकर शहद मधुमक्खी का संरक्षण भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह विशेष क्षेत्र प्राकृतिक वनस्पतियों से समृद्ध है जो निश्चित रूप से मधुमक्खी पालन के लिए लाभकारी है और किसान उनकी सेवाओं से लाभान्वित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन के माध्यम से किसान अपने सेब और अन्य फसलों के परागण के लिए परागणकों को संरक्षित करने के अलावा मधुमक्खी उत्पाद जैसे शहद, पोलन इत्यादि को बेचकर अच्छी रकम भी कमा सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस योजना के अंतर्गत किसानों को मधुमक्खी बक्से उपलब्ध करवाए जाएंगे और आवश्यकता पड़ने पर तकनीकी व्यक्तियों के माध्यम से उन्हें और तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी।
प्रशिक्षण कार्यक्रम मुख्य अतिथि एवं निदेशक हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला डॉ. संदीप शर्मा ने कहा कि यह विशेष क्षेत्र औषधीय पौधों एवं जड़ी-बूटियों से समृद्ध है, इसलिए यदि लोग मधुमक्खी पालन करते हैं तो इससे उनकी आय में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा की शहद उत्पादन के अलावा परागण सेवाओं के लिए मधुमक्खी का संरक्षण भी किया जा सकता है। उन्होंने मधुमक्खी उत्पादों के विपणन पर भी जोर दिया। उन्होंने वर्ष के विभिन्न मौसमों में मधुमक्खी के संरक्षण के बारे में भी बताया। उन्होंने मधुमक्खी पालन के माध्यम से आजीविका सृजन में सुधार पर जोर दिया।
आईसीएफआरई एचएफआरआई शिमला के प्रमुख विस्तार प्रभाग में वैज्ञानिक डॉ. जगदीश सिंह ने प्रतिभागियों को किसानों की आजीविका में सुधार में कृषि वानिकी की भूमिका से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि किसान अपने सेब और अन्य बागवानी पौधों के बीच औषधीय पौधे उगा सकते हैं, इससे उन्हें उचित बागवानी उपज के अलावा औषधीय पौधों की उच्च कीमतें प्राप्त करने में मदद मिलेगी। जिससे की उनकी आर्थिक आय में भी वृद्धि संभव है।
डॉ. यशवन्त सिंह परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी, सोलन क्षेत्रीय स्टेशन, नेरी, हमीरपुर के वैज्ञानिक डॉ. विजय सिंह ने प्रतिभागियों को मधुमक्खी कॉलोनी, एवं उनके सदस्यों के बारे में जानकारी दी, उन्होंने प्रतिभागियों को मधुमक्खी कॉलोनी में श्रमिक मधुमक्खियाँ, ड्रोन और रानी मधुमक्खी की भूमिका के बारे में भी बताया। उन्होने मधुमक्खी कॉलोनी में बरती जाने वाली सावधानियां, कॉलोनी से शहद कैसे निकालें विषय पर भी जानकारी दी। उन्होंने प्रतिभागियों को यह भी बताया कि शुष्क महीनों में जब आसपास फूल नहीं होते तो कृत्रिम आहार पर मधुमक्खी का पालन कैसे किया जाए। उन्होंने मधुमक्खी के शिकारियों और बीमारियों तथा उनके पर्यावरण अनुकूल उपायों के बारे में भी बताया। उन्होंने मधुमक्खी पालन उपकरणों के बारे में बताया जैसे मधुमक्खी आवरण, मधुमक्खी का डिब्बा, सुपर बॉक्स, चाकू और शहद निकालने वाला यंत्र आदि उपकरणों की व्यावहारिक उपयोगिता का प्रदर्शन किया। उन्होंने प्रतिभागियों को मधुमक्खी कॉलोनी के व्यावहारिक संचालन के बारे में भी बताया।

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