लाहौल और स्पीति को जोड़ने वाले दुर्गम रास्ते के बीच में 13084 फीट की उंचाई पर स्थित चंद्रा ढाबे के मालिक हजारों राहगिरों की बचा चुके हैं जान
ढाबे का नाम सुनकर आप सभी सोच रहे होंगे कि खाने पिने की बात हो रही है लेकिन ऐसा नहीं है, हिमाचल के कबाईली जिले लाहौल स्पीति के दुर्गम क्षेत्र बातल में एक ऐसा ढाबा है, जो खाने के बजाए लोगों की जान बचाने के लिए मशहूर है। जी हां मनाली से 114 किलोमिटर की दूरी पर लाहौल को स्पीति से जोड़ने वाले कुंजुम दर्रे पर तलहटी पर बना चाचा चाची का चंद्रा ढाबा अभी तक हजारों राहगिरों की जानें बचा चुका है। 13,084 फीट की उंचाई पर चंद्रा नदी के साथ बने इस ढाबे की दोनों ओर 60 किलोमिटर तक कोई और भवन या दुकान नहीं है। चाचा चाची के चंद्रा ढाबे के नाम से पहचाने जाने वाले यह ढाबा हाल ही में 17 अक्टूबर को हुई भारी बर्फबारी में फसें 60 पर्यटकों के लिए मसीहा बनकर सामने आए हैं। इस विराने में पिछले 49 वर्षाें से ढाबा चलाने वाले 65 वर्षिय दोरजे बोध जिन्हें हर कोई चाचा ही पुकारते हैं और उनकी पत्नी यिषे छोमो ने इन पर्यटकों न सिर्फ खाना खिलाया बल्कि इन्हें जरूरत की दवाईयां और रहने की व्यवस्था चार दिनों तक की।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब चाचा चाची ने बातल में फंसे लोगों की मदद की है। चाचा (दोरजे बोध) ने बताया कि वे पिछले 49 वर्षाें से इस स्थान में अपना ढाबा चला रहे हैं। वे बताते हैं कि यहां के मौसम का कोई पता नहीं चलता है जिसकी वजह से बहुत से पर्यटक यहां फंस जाते हैं। उन्होंने बताया कि चार साल पहले भी बातल में 106 पर्यटक छह दिनों के लिए फंस गए थे। इन सभी पर्यटकों को उन्होंने अपने पास छह दिन तक रखा था और इससे पहले भी ऐसे ही कई फंसे हुए पर्यटकों को उन्होंने अपने पास कई कई दिनों तक रखा और उनके रहने खाने की व्यवस्था की। वे बताते हैं कि कई लोगों के पास कम पैसे होते हैं इसलिए वे उनसे पैसे भी नहीं लेते हैं।
चाचा बताते हैं कि वे पांच दशकों से इस क्षेत्र में हैं लेकिन अब मौसम में बहुत अंतर देखा जा रहा है। पहले यहां चोटियों में बहुत बर्फ हुआ करती थी और लंबे समय तक टिकी रहती थी, लेकिन अब यहां बर्फ जल्दी पिघल जा रही है। इसके अलावा अब बेमौसमी बर्फबारी भी बहुत देखी जा रही है। वहीं कई बार सर्दियों में बहुत कम बर्फ पड़ रही है जिसकी वजह से ग्रांफू काजा सड़क जो लंबे समय तक बंद रहती थी, वह भी जल्दी खुल जा रही है।
चाची (यिषे छोमो) बताती हैं कि वे दोनों मनाली से बातल तक पैदल पहुंचते हैं। कुछ दशक तक जब वे पहले यहां आते थे रास्ते में बहुत अधिक बर्फ मिलती थी और अधिक जमी हुई बर्फ में चलना भी आसान होता था, लेकिन अब पिछले कुछ समय से यहां उतनी बर्फ नहीं पड़ रही है और बर्फ के कच्चे होने की वजह से उन्हें यहां पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
17 अक्टूबर की बर्फबारी के बाद एक बार फिर मौसम विभाग की ओर से लाहौल स्पीति में बर्फबारी और बारीश को लेकर अलर्ट जारी किया है। वहीं स्पीति के अतिरिक्ति जिला उपायुक्त ने बताया कि बातल में फंसे सभी पर्यटकों को रेस्क्यू कर लिया गया है और अब सभी लोग सुरक्षित हैं। उन्होंने लोगों से अपील की है कि अभी मौसम का अलर्ट जारी किया गया है इसलिए स्पीति में आने परहेज करें।
पिछले पांच दशकों से बर्फ की ढकी वादियों के बीच अपना जीवन व्यतित करने वाले चाचा चाची के अनुभव भी पर्यावरण में हो रहे बदलावों और जलवायु परिवर्तन के प्रति संकेत कर रहे हैं। चाचा चाची ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि मौसम बदल रहा है साथ ही मौसम में आ रहे अप्रत्याषित बदलावों के चलते यहां पर पर्यटकों के फंसने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। इसलिए हमें चाहिए कि हम इन लोगों के अनुभवों से सीखें और जहां तक हो सके कार्बन उत्सर्जन को कम करें और जलवायु परिवर्तन की गति को कम करने में ग्रीन गुड डीड्स को अपनी दिनचर्या में शमिल करें।