रोहित वशिष्ठ
कृषि अर्थशास्त्र शोधार्थी
“हर साल मुझे खेती के लिए रसायन और कीटनाशक खरीदने के लिए डेढ लाख रूपये तक का कर्ज लेना पडता था। कई बार अच्छी फसल न होने के चलते मेरी दिक्कतें और अधिक बढ़ जाती थी और मन में ख्याल आता था कि खेती-बाड़ी छोड़कर कुछ और काम धंधा कर लूं। लेकिन जब से प्राकृतिक खेती को अपनाया है तब से एक रूपये का भी कर्ज नहीं लिया है। मैं अपने घर में मौजूद संसाधनों से ही खेती में प्रयोग होने वाले सभी आदान तैयार कर रहा हूं। इससे मेरा खर्चा बिल्कुल ही घट गया है। प्राकृतिक खेती ने मुझे कर्ज मुक्त के साथ चिंतामुक्त भी कर दिया है” । यह कहना है मंडी जिला के किसान-बागवान हेतराम का। हेतराम 13 बीघा में प्राकृतिक खेती कर अपना भरण पोषण कर रहे हैं।
शीत मरूस्थल स्पिति की येशे डोलमा का कहना है कि “प्राकृतिक खेती विधि से जुड़ने के बाद हमारे खेती उत्पादों को अलग पहचान मिली है और हमारी विपणन की समस्यांए भी काफी हद तक दूर हो गई हैं। लोग हमारे उत्पादों को खरीदने के लिए इंतजार में रहते हैं और अब तो एडवांस बुकिंग भी आना शुरू हो गई है । प्राकृतिक खेती उत्पादों की सैल्फलाइफ भी बहुत अच्छी है जिससे हमारी फल सब्जियां अधिक दिनों तक टिकी रहती हैं”।
सेब बहुल क्षेत्र चौपाल के बागवान सुरेंद्र मेहता कहते हैं कि “रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से हमारी सेहत पर बहुत बुरे प्रभाव पड़ रहे थे। रसायनों के दुष्प्रभाव के चलते मुझे कई बार अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ा। लेकिन जब से प्राकृतिक खेती को अपनाया है तब से स्वास्थ्य सबंधी सभी दिक्कतें दूर हो गई हैं और अब तो हम बच्चों को भी बागीचे में स्प्रे के लिए भेज देते हैं”।
बिलासपुर जिला के किसान ब्रह्मदास का कहना है कि “हमारे गांव में छोटे-छोटे किसान हैं। ये सभी किसान मंहगे रसायनों के चलते खेती से दूर होते जा रहे थे ऐसे में प्राकृतिक खेती न हम किसानों को एक नई राह दिखाई और अब हमारा पूरा गांव प्राकृतिक खेती से जुड़ गया है। हमारे गांव फ्योडी में अब घर में तैयार आदानों से ही खेती कर रहे हैं और और हमारी बाजार पर से निर्भरता खत्म हो गई है” ।
प्राकृतिक खेती से किसानों को मिल रहे बेहतर परिणामों का ही नतीजा है कि यह खेती विधि हिमाचल प्रदेश के किसान-बागवानों में बड़ी तेजी से ख्याति पा रही है। इस खेती विधि से किसानों की आर्थिकी बेहतर हुई है, साथ ही बहुफसलीय प्रणाली होने के चलते किसानों को निरंतर आय मिल रही है।
2018 में हिमाचल सरकार द्वारा शुरू की गई ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना के तहत अपनाई गई ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ विधि शुरूआती साल में ही किसानों को रास आ गई और 500 किसानों को जोड़ने के तय लक्ष्य से कहीं अधिक 2,669 किसानों ने इस विधि को अपनाया। ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ का कार्यान्वयन करने वाली राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई के आंकडों के अनुसार साल 2019-20 में भी 50,000 किसानों को योजना के अधीन लाने के लक्ष्य को पार करते हुए 54,914 किसान इस विधि से जुड़े। कोविड काल में भी इस विधि के प्रति किसानों का लगाव बढ़ा एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद साढ़े 14 हज़ार से ज़्यादा नए किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है। हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से शुरू की गई इस योजना के तहत अक्टूबर 2021 तक प्रदेशभर में 1,71,353 किसानों को प्रशिक्षित किया गया है, जिनमें से 1,59,465 किसान परिवारों ने 1 लाख बीघा (9,212 हैक्टेयर) से ज़्यादा भूमि पर इस खेती विधि को खेती-बागवानी में अपनाया। कृषि विभाग के आंकडों के अनुसार ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना प्रदेश की 3,615 में से 3,581 पंचायतों तक पहुंच चुकी है।
इसके साथ ही योजना की कार्यान्वयन इकाई की ओर से 926 किसान-बागवानों के उपर किए गए अध्ययन में प्राकृतिक खेती अपनाने वाले सेब बागवानों की लागत में 56.5 फीसदी तक की कमी आई है और उनकी शुद्ध आय 27.4 बढ़ी है। वहीं प्राकृतिक खेती किसानों की खेती फसलों की लागत में 45.05 प्रतिशत तक कमी आई है, वहीं उनका शुद्ध लाभ 21.05 प्रतिशत तक बढ़ा है। इसके अलावा सेब-बागवानी और खेती फसलों में रसायनिक के मुकाबले प्राकृतिक खेती में बीमारियों का प्रकोप भी कम आंका गया है। इसके अलावा इस अध्ययन में किसानों से किए गए सवालों में उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती विधि से तैयार फल व सब्जियों का स्वाद बेहतर है और इनकी सैल्फ लाइफ भी बहुत अच्छी है। इसके अलावा किसानों ने माना है कि इस विधि से उनके खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ी है और खेत-बागीचों में मित्रकिटों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। किसानों के अनुभव बताते हैं कि सूखे की स्थिति में भी फसलें खड़ी रहती हैं।
इस वर्ष किसान और उपभोक्ता को जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य योजना तैयार की है, जिसमें किसान-बागवानों के उत्पाद उनके आस-पास के उभोक्ताओं को कैसे मिले, शहरी क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को कैसे मिले और बड़े स्तर पर बाजार में कैसे उपलब्ध रहे। इसके लिए प्राकृतिक खेती करने वाले किसान-बागवानों के लिए 40 कृषि उत्पाद संघों का गठन कर सतत खाद्य प्रणाली तैयार की जा रही है। इसका मुख्य सिंद्धात किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिले और दूसरा उपभोक्ताओं को जानकारी रहे कि वे जो उत्पाद खरीद रहे हैं वो किस किसान का है इस पर पारदर्शिता बरती जा रही है
‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना की राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई एक सतत् खाद्य प्रणाली पर भी काम कर रही है ताकि प्रदेश में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। इस प्रणाली को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के विशेषज्ञों के सुझावों के अनुरूप पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए वास्तविक मूल्य के सिद्धांत पर तैयार किया जा रहा है। किसानों के उत्पादों को बाजार मुहैया करवाने के लिए हर एक ब्लॉक में किसान उत्पाद संघों का निर्माण किया जा रहा है। इनके माध्यम से किसानों को उनके उत्पादों को उचित मूल्य प्रदान करने की दिशा में काम किया जा रहा है।
किसानों के व्यापक कल्याण के लिए राज्य परियोजना इकाई, नीति आयोग और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रही है। प्रदेश में प्राकृतिक खेती कर रहे किसान-बागवानों के लिए एक अनूठी स्व-प्रमाणन प्रणाली भी विकसित की जा रही है ताकि बाजार में प्राकृतिक खेती उत्पाद की पैठ बढ़े एवं किसानों को बेहतर मूल्य सुनिश्चित हो।
इस योजना के तहत जुड़ने वाले किसानों का सरकार की ओर से विभिन्न आदानों के निर्माण से संबंधित अनुदान दिए जा रहे हैं।
इस खेती विधि को अपनाने वाले किसान -बागवानों की बाजार पर से निर्भरता खत्म हो रही है और वे अपने आप पास के संसाधनों का ही खेती में प्रयोग कर रहे हैं। जिससे किसानों की कृषि लागत बहुत कम हो गई है और उनके मुनाफे में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पर्यावरण हितैषी इस खेती विधि से किसानों की पानी की खपत में कमी आई है और कृषि अवशेषों के बेहतर निपटारे के लिए भी सशक्त विकल्प मिला है। इस खेती विधि से हिमाचल के किसान कृषि को भविष्य के लिए बचाने का काम भी कर रहे हैं।
माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हिमाचल सरकार की ओर से शुरू की गई इस योजना के तहत चरणबद्ध तरीके से किसानों को जोड़ने का काम किया जा रहा है। इस साल इस योजना के तहत 12 हजार हैक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती के तहत जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है और आगामी 15 वर्षों में हिमाचल को प्राकृतिक खेती राज्य बनाने का संकल्प लिया गया है।