अटल टनल को आधिकारिक तौर पर वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा ‘10,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग’ के रूप में मान्यता दी गई
साल के ज्यादातर बर्फ से ढके रहने वाले रोहतांग दर्रे के नीचे पहाड़ का सीना चीरकर बनाई गई सामरिक, रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण विश्व प्रसिद्ध अटल टनल का नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो गया है। चट्टानों का कलेजा काटकर बनाई गई इस अटल टनल ने न सिर्फ कबाईली क्षेत्र लाहौल.स्पीति और लेह और लद्दाख के लोगों को सदियों की कैद से मुक्ति दिलाकर उनकी दुश्वारियों को कम किया है। बल्कि चीन और भारत के बीच चल रहे तनाव के बीच भारत की तैयारी को और अधिक मजबूत कर दिया है। नई दिल्ली में 9 फरवरी 2022 को आयोजित एक ऐतिहासिक समारोह के दौरान, अटल टनल को आधिकारिक तौर पर वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ‘10,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग’ के रूप में मान्यता दी गई है। सीमा सड़क संगठन के महानिदेशक (डीजीबीआर) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने मनाली को लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़ने वाली इस उत्कृष्ट इंजीनियरिंग के निर्माण में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की शानदार उपलब्धि के लिए पुरस्कार प्राप्त किया।
घोड़े की नाल के आकार की अटल टनल दो मंजिला दूरदर्शी परियोजना और राष्ट्र का गौरव अटल टनल 03 अक्टूबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्र को समर्पित की गई थी। रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण 9.02 किलोमीटर लंबी अटल टनल ‘रोहतांग दर्रे’ से गुजरती है, इसका निर्माण मनाली-लेह राजमार्ग पर अत्यंत कठिन इलाके में ठंड के तापमान की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में किया गया था। इस सुरंग के निर्माण से पहले तक, यह राजमार्ग लाहौल और स्पीति को मुख्य भूमि से अलग करते हुए सर्दियों के मौसम में छह महीने तक बंद रहा करता था। अटल टनल के निर्माण से मनाली-सरचू सड़क पर 46 किलोमीटर की दूरी और यात्रा के समय में चार से पांच घंटे तक की कमी आई है, जिससे मनाली-लेह राजमार्ग पर सभी मौसमों में कनेक्टिविटी उपलब्ध हो गई है।
हिमालय के पीर पंजाल पर्वतमाला में तैयार की गई इस सुरंग का निर्माण तकनीकी और इंजीनियरिंग कौशल की उतनी हीकठिन परीक्षा है, जितनी मानव सहनशक्ति और मशीनी प्रभावकारिता की।इसका निर्माण अत्यंत कठोर एवं चुनौतीपूर्ण इलाके में किया गया है, जहां सर्दियों में तापमान शून्य से 25 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है और अक्सर सुरंग के अंदर का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इसको बनाते समय नाजुक भूविज्ञान और सेरी नाला के रिसाव जैसी समस्याएं सामने आई हैं, जो अटल सुरंग में बाढ़ का कारण बनती हैं।इसके साथ ही उच्च भार और अत्यधिक बर्फबारी के रूप में कुछ प्रमुख निर्माण दिक्कतें भी थीं, लेकिन बीआरओ के कर्मचारियों ने इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया।
अटल टनल की विशेषताएं जो इसे अलग बनाती हैंः
- दुनिया में अभी तक 3000 मीटर की उंचाई पर अटल टनल की लंबाई की बराबरी करने वाली टनल का निर्माण नहीं किया गया है।
- टनल के सामरिक महत्व को देखते हुए इस टनल की सुरक्षा में तैनात होने वाले सुरक्षा कर्मियों की संख्या अन्य टनलों के मुकाबले कहीं अधिक है।
- टनल के हर 1 किलोमीटर बाद पार्किंग स्पेस रखा गया है।
- इमरजेंसी एग्जीट टनल में जाने के लिए हर 500 मीटर पर एस्केप रूट है।
- टनल की निगरानी के लिए हर 250 मीटर पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं।
- हर 150 मीटर के बाद टेलीफोन की सुविधा है।
- टनल में हर 60 मीटर के बाद फायर हाईड्रेंट लगे हैं।
- इससे रोजाना करीब 1500 भारी वाहन और 3000 हलके वाहन, 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गुजर सकेंगे।
- टनल के भीतर हवा की क्वालिटी जांचने के लिए हरेक किलोमीटर पर एयर क्वालिटी माॅनिटरिंग सिस्टम लगा है।
- आपातकाल की सूचना के लिए आधुनिक ब्राॅडकाॅस्ट सिस्टम लगाए गए हैं।
सामरिक महत्व
अटल टनल के निर्माण का बहुत महत्व है। सामरिक द्ष्टि से यह टनल चीन की सीमा और कारगिल तक सेनाओं और गोला-बारूद को 12 महिने तक समय पर पहुंचाने के लिए अति महत्वपूर्ण है। ध्यान रहे कि कारगिल वाॅर के दौरान भी मनाली लेह मार्ग का प्रयोग रसद पहुंचाने के लिए किया गया था और इस दौरान रोहतांग टनल की जरूरत को समझा गया था। भविष्य में यह टनल लेह लद्दाख में तैनात भारतीय सेना के लिए भी लाइफ लाइन साबित हो रही है।
पर्यावरण की दृष्टि से महत्व
पर्यावरण की दृष्टि से रोहतांग टनल का अति महत्व है। रोहतांग पास एक पर्यटन स्थल है और इसमें रोजाना हजारों पर्यटक सैकड़ों वाहनों में सवार होकर पहुंचते हैं। अत्यधिक वाहनों की आवाजाही व निकलने वाले धुएं से पर्यावरण पर विपरित असर पड़ रहा था। इसी के चलते एनजीटी ने रोहतांग पास में जाने वाले वाहनों की संख्या का निर्धारित किया है। ऐसे में अब टनल के बन जाने से जहां 46 किमी की दूरी कम होगी वहीं वाहनों से निकलने वाले धुएं से पर्यावरण प्रदूषण भी कम हो रहा है।
आर्थिक महत्व
टनल के निर्माण से लाहौल-स्पीति और लेह, लद्दाख के लोगों की आर्थिकी में तो असर पड़ेगा वहीं इन क्षेत्रों में पर्यटन गतिविधियों से जुड़े हजारों लोगों को भी आर्थिक लाभ पहुंच रहा है। लाहौल क्षेत्र के लोग टनल से अपनी सब्जियों, फलों और जड़ी-बूटियों को समय से बाजार तक पहुंचा रहे हैं। इसके अलावा सेना की ओर से सर्दियों के लिए जो रसद और अन्य सामानों का भंडारण करने में खर्च आता था वह भी कम हो रहा है।
स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं को बल
इसके निर्माण से लाहौल क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य सबंधी दिक्कतों से छुटकारा मिल जाएगा। सर्दियों में बर्फबारी के दौरान रोहतांग पास के कठिनाई भरे रास्ते के बंद होने की वजह से लाहौल क्षेत्र के लोगों को हवाई सेवाओं पर पूरी तरह से निर्भर रहना पडता था।। टनल के बन जाने से लोग आसानी से मरिजों को कुल्लू और अन्य बड़े अस्पतालों तक पहुंच रहे हैं। इसके अलावा टनल के खुलने से क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाओं को भी बल मिल रहा है।। इससे क्षेत्र के युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की उपलब्धता हो रही है।
पूर्व प्रधानमंत्री ने जन 2000 में की थी टनल की घोषणा
रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक महत्व की सुरंग बनाए जाने की ऐतिहासिक घोषणा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौल के केलांग में 3 जून 2000 को एक जनसभा में की थी। सुंरग के दक्षिणी हिस्से को जोड़ने वाली सड़क की आधारशिला 26 मई 2002 को रखी गई थी। इसके बाद 28 जून 2010 को इस सुरंग का निर्माण कार्य शुरू किया गया था और फरवरी 2015 तक इसका निर्माण कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन टनल के ठीक ऊपर बहने वाले सेरी नाला का पानी रिसने से रोहतांग टनल का निर्माण करीब 5 साल आगे खिसक गया, जिससे टनल की निर्माण लागत 4 हजार करोड़ तक पहुंच गई है। टनल के दोनों छोर अक्टूबर 2017 में मिले, राष्ट्र का गौरव अटल टनल 03 अक्टूबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्र को समर्पित की गई थी।
विश्व की अन्य सुरंगे
अभी तक दुनिया के सबसे उंचाई वाले क्षेत्र में बनी सबसे लंबी टनल का रिकार्ड तजाकिस्तान की अंजोब टनल के नाम है। यह टनल 5 किलोमीटर लंबी है और यह 3372 मीटर की उंचाई पर बनाई गई है। इसके अलावा क्वेटा के निकट खोजक रेल सुरंग की लंबाई 3.9 किलोमीटर है। अमेरिका की आजलेनहॉवर स्मारक सुरंग की लंबाई 2.7 किमी है व ऊंचाई 3401 मीटर है। देश की अब तक की सबसे लंबी सुरंग महाराष्ट्र के रत्नगिरी जिले की करबुड सुरंग है, जिसकी लंबाई 6.5 किमी है, यह कोंकणा रेल नेटवर्क का हिस्सा है। वहीं सड़क मार्ग सुरंग के हिसाब से जवाहर सुरंग 2208 मीटर की ऊंचाई पर 2.8 किमी लंबी है।
सैकड़ों लोगों की मौत की वजह बन चुका है रोहतांग पास
भोटी भाषा में रोहतांग का अर्थ लाशों का ढेर होता है। अपने नाम के अर्थ को सार्थक करते हुए रोहतांग दर्रे में अभी तक दर्जनों लोगों के लिए कब्रगाह साबित हुआ है। वर्ष 1971 में यहां दर्जनों लोगों पर बर्फ मौत बनकर बरसी थी और इसमें कई लोग लोग बर्फ में जिंदा दफन हुए थे। इसके अलावा 1975 में 3 भेड़पालकों सहित सैंकड़ों भेड़ें मर गई थी। वर्ष 1980 में 5 लोगों की मौत दर्रे में हुई थी। 20 नवंबर, 2009 में 9 लोगों के शव बर्फ से निकाले गए थे। वहीं पर्यटकों को बर्फ का दीदार हर बार भारी पड़ता है। पिछले साल सिंतबर में रोहतांग पास में भारी बर्फबारी की वजह से सैकडों पर्यटक फंसे थे जिनमें से कुछ को एयरलिफ्ट करके निकाला गया था तो बाकियों रोहतांग टनल के माध्यम से मनाली पहुंचाया गया था। इसके अलावा 2020 मई माह में सैकडों लोगों को टनल से ही लाहौल और मनाली आर-पार करवाया गया है।
लेह तक तीन अन्य टनल है प्रस्तावित
मनाली से लेह तक के सड़क मार्ग को 12 माह खुला रखने के लिए केंद्र सरकार की ओर से रोहतांग टनल के अलावा अन्य तीन टनल का निर्माण प्रस्तावित है। इन टनल के निर्माण से जहां देश की सीमाओं तक सेनाएं आसानी से पहुंच सकेंगी साथ में समय के साथ ईंधन की भी भारी बचत होगी। रोहतांग टनल के अलावा 16040 फीट उंचाई वाले बारालाचा ला पास में 13.2 किमी लंबाई वाली टनल बनाई जाएगी। लाचुंग ला पास में 16800 फीट पर 14.78 किमी और 17480 फीट उंचाई पर तांगलांग ला पास में 7.32 किमी लंबी टनल बनाना प्रस्तावित है।