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ख्याति पाती कांगड़ा चाय

पिछले 175 वर्षाें से अपने में एक अलग स्वाद को संजोए कांगड़ा चाय की ख्याति दिनों दिन बढ़ती जा रही है। धौलाधार की बर्फ से ढ़की पहाडियों के आगोश में उगने वाली मीठी और वुडी सुगंध वाली कांगड़ा चाय का स्वाद इसे देश दुनिया में उगने वाली अन्य चाय से बिल्कुल अलग बनाता है। जियोग्राफिकल इंडिकेटर प्राप्त कांगड़ा चाय की ख्याति के साथ इसके उत्पादन में रिकार्ड बढ़ोतरी देखी गई है। इस साल कांगड़ा चाय का उत्पादन पिछले 25 वर्षाें में सबसे अधिक 11 लाख 67 हजार किलोग्राम रिकार्ड किया गया है। कांगड़ा चाय के उप्तादन में हो रही बढ़ोतरी और इससे बढ़ रही आर्थिकी को देख एक बार फिर चाय की खेती की ओर लोगों का रूझान बढना शुरू हुआ है। कांगड़ा चाय को पिछले वर्ष ही यूरोपियन यूनियन का पंजीकृत जीआई टैग भी प्राप्त हुआ है। इसके अलावा कांगड़ा चाय को हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका दौरे के दौरान वहां के राष्टªपति को विशेष तौर पर भेंट किया था। जिससे कांगड़ा टी को नई पहचान मिल रही है।
पूरे विश्व में विभिन्न सुगंधित पेय पदार्थाें में सबसे अधिक पीया जाने वाला पेय चाय है। चाय को बनाने की पद्धति के अनुसार यह दो प्रकार की होती है। एक सीटीसी चाय जो कि भारत में अधिकांश घरों में पी जाती है और दूसरी ऑर्थाेडॉक्स चाय जिसे मुख्य तौर पर ब्लैक और ग्रीन टी के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है। हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा चाय ऑर्थाेडॉक्स चाय है। जो कि चाय की पहली प्रकार की प्रजाति के सदाबहार पौधों की कोमल युवा पत्तियों और कलियों से बनाई जाती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से ऑर्थोडॉक्स चाय अधिक लाभप्रद है। क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट पाये जाते हैं। जो कि विभिन्न बीमारियों से लड़ने में, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इसके साथ ही इससे बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने में एंटी एजींग गुण भी पाये जाते हैं। इन सभी गुणों से परिपूर्ण कांगड़ा चाय अपने स्वाद, रंग और महक के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
कांगड़ा चाय में पॉलीफेनोल्स, कैटेकिन्स, की भी अधिक मात्रा है और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआईआर से संबद्ध हिमालयन जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा भी परीक्षणों में सत्यापित किया गया है कि कोविड-19 से लड़ने में यह सहायक है। सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर द्वारा चाय की द्वितीयक उत्पाद की तकनीक भी विकसित की गई है। जिनसे विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे चाय आधारित प्राकृतिक सुंगधित तेलों से युक्त अल्कोहल, हैंड सेनेटाइजर, हर्बल साबून, टी वाईन, टी विनेगर, इत्यादि का उत्पादन व आपूर्ति भी प्रौद्योगिकी साझेदारों के साथ मिलकर की जा रही है।
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा चाय के अंर्तगत कुल क्षेत्रफल 2310.71 हैक्टेयर है। जिसमें से लगभग क्षेत्रफल 1097 हैक्टेयर में व्यवसायिक उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है। कांगड़ा चाय के उत्पादकों की कुल संख्या 5900 है। जिनमें से 5200 कांगड़ा से और बाकि के 700 किसान बागवान मंड़ी जिले के जोगेंद्रनगर, बीड़ क्षेत्र से संबंध रखते हैं। कांगड़ा चाय के कुल उत्पादकों में से 96 फीसदी सीमांत हैं जिनके पास आधा हैक्टेयर से भी कम क्षेत्रफल है। यह सीमांत किसान कांगड़ा चाय के कुल उत्पादन जो कि 10 लाख किलो है में 59 फीसदी योगदान करते हैं।
चाय बागानों में उगने वाली चाय की प्रोसेंसिंग के लिए प्रदेश में चाय के चार सहकारी और 35 व्यक्तिगत कारखाने हैं। वर्तमान में केवल पालमपुर सहकारी चाय कारखाना कार्यरत है और अन्य तीन निजी उद्योगों को लीज पर दिए गए हैं। पालमपुर सहकारी चाय कारखाने का कुल उत्पादन में 45 फीसदी का योगदान है जो कि छोटे एवं सीमांत किसानों से चाय की हरी पत्तियों को लेकर व्यवसायिक कांगड़ा ब्लैक और ग्रीन टी का उत्पादन करता है। इसके कुल उत्पादन का 90 फीसदी हिस्सा कोलकाता के नीलामी केंद्र में भेजा जाता है और शेष 10 फीसदी हिस्से को स्थानिय बाजार में बिक्री के लिए भेजा जाता है।
कांगड़ा टी को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल सरकार की ओर से पिछले कुछ समय में सराहनीय प्रयास किए गए हैं। तकनीकी अधिकारी डॉ सुनिल पटियाल का कहना है कि चाय उत्पादकों को उच्च गुणवता वाले टी प्लांट्स दो रूपये की दर पर घर द्वार पर दिए जा रहे हैं। इसके अलावा चालू वित्त वर्ष में प्रदेश सरकार ने पहली बार राज्य योजना आरकेवाईपी के तहत चाय मशीनरी पर 50 फीसदी तक के अनुदान दिया जा रहा है।
इसके अलावा चाय उत्पादकों की चाय के पौधों की मांग को कृषि विभाग की चाय नर्सरी डिफरपट्ट, पालमपुर द्वारा पूरा किया जा रहा है। विभाग की ओर से हर वर्ष एक लाख पौधों को किसानों को घर द्वार पर उपलब्ध करवाया जा रहा है। कृषि विभाग हिमाचल प्रदेश द्वारा चाय के क्षेत्र में अनुसंधान केंद्रों द्वारा इजात की जा रही नवीनतम तकनीकों को चाय की खेती करने वाले किसान-बागवानों को प्रशिक्षण व व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से उपलब्ध करवाई जा रही है, ताकि चाय बागान के मालिकों को इससे लाभ मिल सके और उनकी आर्थिकी में और अधिक सुधार हो सके। 

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