टीबी उन्मूलन के लिए प्रयास और चुनौतियां
टीबी उन्मूलन के लिए पूरी दुनिया में प्रयासों में तेजी ला जा रही है। भारत और हिमाचल प्रदेश में भी इससे छुटकारा पाने के लिए टीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक दुनिया को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है वहीं भारत ने 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य रखा है। भारत को टीबी मुक्त करने के लिए केंद्र, राज्य और स्वयं सहायता संगठनों द्वारा विभिन्न स्तरों पर कार्य किए जा रहे हैं। लेकिन इन कार्यक्रमों का व्यापक प्रचार प्रसार और लोगों तक पहुंच न होने के चलते भारत का 2025 तक टीबी मुक्त होना संभव नहीं लग रहा है। 2024 आधा गुजर चुका है और पूरी दुनिया के 26 फीसदी से अधिक टीबी के रोगी भारत में देखे जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि भारत में टीबी के मामले कम नहीं हो रहे लेकिन टीबी मुक्त होने के लिए टीबी के मामलों में जिस गति से कमी आनी चाहिए, वह नहीं हो पा रही है। यही हाल पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी देखा जा रहा है। भले ही पिछले 4 वर्षाें में हिमाचल प्रदेश टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के आयोजन में पूरे देश में पहला स्थान हासिल कर रहा हो लेकिन इसके बावजूद प्रदेश में हर साल लगभग 15 हजार टीबी के मामले देखे जा रहे हैं। साक्षरता में दूसरे स्थान रहने वाले हिमाचल प्रदेश में पर्याप्त जागरूकता न होने के चलते अभी भी टीबी के प्रति अंध विश्वास और भ्रांतियां कम नहीं हो पा रही हैं। जिससे टीबी को पूरी तरह खत्म करने में अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। प्रदेश में पोषणयुक्त खाद्यान की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, जागरूकता की कमी, ग्रामीण क्षेत्रों में टेस्टिंग की सुविधा न होने के चलते टीबी हर साल पहाड़ के 1000 के करीब लोगों की जानें लील रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि टीबी का पोषणयुक्त आहार और लोगों के स्वास्थ्य के हालातों के साथ सीधा संबंध है। जिन क्षेत्रांे में पोषाणयुक्त आहार मिलते हैं वहां पर लोगों के स्वास्थ्य के हालात अच्छे होते हैं और ऐसे क्षेत्रों में टीबी जैसे संक्रामक रोग का प्रसार अधिक नहीं देखा जाता है। जबकि पोषणयुक्त आहार न मिलने के चलते स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझने वाले क्षेत्रों में इस संक्रामक रोग का प्रसार अधिक देखा गया है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे 5 के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में 6 से 59 माह तक के 55 फीसदी बच्चों में एनीमिया, 53 फीसदी महिलाओं में भी एनीमिया, 15 से 49 वर्ष तक की 13.9 फीसदी महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स सामान्य से कम पाया गया। वहीं 30 फीसदी महिला और पुरुषों में मोटापे की समस्या पाई गई है। सर्वे में निकलकर आए यह आंकडे़ न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि इन्हें देखते हुए समय रहते सतर्क होने की भी जरूरत है। लोगों के स्वास्थ्य हालातों में सुधार के लिए पोषणयुक्त आहार की उपलब्धता के लिए सरकारों को प्रयासों में तेजी लानी चाहिए ताकि इनकी वजह से टीबी सहित अन्य बीमारियों से लड़ने के लिए लोगों में इम्यूनिटी तैयार हो सके।
पोषण विशेषज्ञ के अनुसार टीबी के मरीजों को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और मिनरल्स से युक्त आहार लेना चाहिए। मांस, मछली, अंडे, दूध, दही, पनीर, फल और सब्जियां शामिल होने चाहिए। प्रोटीन की मात्रा 1.2 से 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम आइडियल बॉडी वेट के अनुसार होनी चाहिए। साथ ही विटामिन डी, ई सी, ए और बी कॉम्प्लेक्स, सेलेनियम, जिंक, फोलिक एसिड और कैल्शियम का सेवन भी जरूरी होता है।
इसके अलावा टीबी के मरीजों को एंटीबायोटिक दवाओं के साथ-साथ मल्टीविटामिन, मल्टीमिनरल्स और पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर का सेवन करना चाहिए। संक्रमित व्यक्ति को सही वजन बनाए रखने के लिए सामान्य से 20-30 फीसदी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
प्रदेश में कई लोगों के पास पर्याप्त पोषक तत्वों से युक्त खाद्यान तक पहुंच नहीं है। गरीबी, कृषि उत्पादकता में कमी और खाद्य वितरण प्रणाली की कमियों के कारण कई लोग पर्याप्त पोषण नहीं ले पा रहे हैं। पोषणयुक्त आहार की कमी से टीबी रोगियों का स्वास्थ्य और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। इससे उनकी बीमारी का इलाज और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
सरकार को गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को पोषक खाद्यान उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाने चाहिए। खाद्य वितरण प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिए। टीबी के मरीजों को नियमित और पर्याप्त मात्रा में दवाएं और पोषक आहार उपलब्ध कराने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार जरूरी है।
इन उपायों से टीबी के प्रकोप को कम करने और मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है। सरकार, स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय समुदाय को मिलकर काम करना होगा।
इसके अलावा हिमाचल में कई दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की कमी है।
टीबी के मरीजों को नियमित चिकित्सा सेवाएं, दवाइयां और पोषण सहायता मिलनी चाहिए। इसके अलावा समाज को भी आगे आकर टीबी के रोगियों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार अपनाना चाहिए। इससे टीबी रोगियों में जो हीन और अलगाव की भावना उत्पन्न हुई होती है, उससे छुटकारा मिलेगा। टीबी उन्मूलन कार्यक्रम को सही मायने में अपनाने और प्रदेश व देश को टीबी मुक्त करने के लिए सरकार, स्वास्थ्य कर्मियों, सामाजिक संगठनों और समाज को मिलकर काम करने के लिए आगे आना चाहिए। साथ ही टीबी के प्रति लोगों में वृहद जागरूकता कार्यक्रम चलाने की जरूरत है। इसके अलावा जो लोग टीबी से मुक्त हो रहे हैं उन्हें आगे आकर इसके बारे में समाज जागरूकता फैलाने के साथ इससे निपटने के बारे में विस्तार से जानकारी साझा करनी चाहिए।
लेखकः रोहित पराशर, शिमला
यह आलेख रीच मीडिया फैलोशिप के तहत लिखा गया है।