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मौसम की मार, इस बार हिमाचल में सेब उत्पादन में भारी गिरावट

पिछले वर्ष के मुकाबले सेब उत्पादन आधा होने के आसार, बागवानी क्षेत्र को हजारों करोड़ का नुकसान

हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में अहम योगदान देने वाले सेब के उत्पादन में इस बार भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। मौसम की बेरुखी की वजह से विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि इस बार सेब का उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले आधा रह सकता है। सर्दियों के मौसम में बर्फबारी न होने, सेब के पौधों में फ्लावरिंग के दौरान बारिश, और फलों के अखरोट के बराबर होने पर हुई ओलावृष्टि के कारण सेब के उत्पादन में गिरावट के मुख्य कारण बताए जा रहे हैं। इसके अलावा अप्रैल, मई माह में तापमान में आई गिरावट और बारिश के कारण पॉलिनेशन के लिए रखी मधुमक्खियों के मारे जाने और उनकी ओर से पॉलिनेशन न होने की वजह से भी इस बार सेब की फसल में कमी आई है। बागवानी विभाग के आंकडों के मुताबिक पीछले वर्ष 3.36 करोड़ सेब की पेटियों का कारोबार हुआ था। हर साल हिमाचल प्रदेश में सेब बागवानी को लेकर 4 से 5 हजार करोड़ रूपये के कारोबार होता है। जबकि इस बार सेब के बागों में सेब की कम पैदावार के चलते इसका उत्पादन 1.5 से 2 करोड़ पेटियों तक सिमटने का अनुमान लगाया जा रहा है। सेब की कम पैदावार का सीधा असर जहां इसकी कीमतों पर पड़ने से उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर इससे प्रदेश के बागवानों को भी भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
हिमाचल प्रदेश में 5 लाख से अधिक लोग सेब बागवानी से सीधे तौर पर जुड़े हैं और इनकी आर्थिकी पूरी तरह सेब बागवानी पर  निर्भर है। ऐसे में मौसम की मार से सेब के उत्पादन में आई गिरावट से इन लाखों लोगों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा।


सूंटा फ्रूट कंपनी के मालिक और बागवान संजीव सूंटा ने बताया कि इस बार शिमला समेत प्रदेश के अन्य जिलों में सेब की पैदावार कम है। मैं जिन बागवानों से सेब खरीदता हूं मैंने उनसे संपर्क किया है उनका कहना है कि इस बार पैदावार आधे से भी कम है।

संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक व बागवान संजय चौहान ने बताया कि मौसम की मार से इस बार प्रदेश के बागवान आहत है। इस बार सेब की पैदावार आधे से भी कम है इससे प्रदेश के बागवानों का लगभग 2500 से 3000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। प्रदेश के कई ऐसे इलाके हैं जहां बागवानों की 60 से 80 फीसदी तक की सेब की फसल खराब हो चुकी है। मौसम के कारण हुए नुकसान का मुआवजा बागवानों को मिलना चाहिए इसके लिए सरकार को प्रयास करने चाहिए।
कुल्लू जिला में 7 बीघा में सेब बागवानी करने वाले हिरा लाल ने को बताया कि इस बार सेब की फसल बहुत ही कम है। जिन बागवानों ने ऐंटी हेल नेट नहीं लगाए थे उन्हें इस बार बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ा है।
बागवानी विश्वविद्यालय नौणी से रिटायर डायरेक्टर रिसर्च और बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने डाउन टू अर्थ इस बार पहली बार इतना खराब मौसम देखने को मिला है। अप्रैल और मई माह में सामान्य से अधिक बारिश हुई है जिससे मधुमक्खियां पोलिनेशन नहीं कर पाई है। जिससे सेब की पैदावार पर भारी असर देखने को मिला है।

गौर रहे कि हिमाचल प्रदेश में सरकारी आंकडों के मुताबिक 1 लाख 13 हजार 154 हैक्टेयर क्षेत्र में सेब उगाया जाता है। कुछ दशक पहले तक प्रदेश के शिमला और कुल्लू जिला तक सिमित सेब की बागवानी अब प्रदेश के 7 जिलों चंबा, मंडी, सिरमौर, किन्नौर और लाहौल स्पीति तक पहुंच गई है और इसके दायरे में लगातार वर्षदर बढ़ोतरी हो रही है।  अकेले शिमला जिले में सेब के कुल उत्पादन का 60 से 65 प्रतिशत सेब उत्पादन होता है। प्रदेश में सेब की 100 से अधिक वेरायटी का सेब उगाया जा रहा है और गर्म और कम उंचाई वाले इलाकों के लिए सेब की नई वेरायटी के आने से प्रदेश के सभी जिलों में सेब बागवानी शुरू हो गई है। सेब कारोबार में सेब को उगाने वाले बागवान के साथ उसकी देखरेख करने वाले मजदूर, पैकर्स, टांसपोटर्स, लदानी, आढती, मधुमक्खी पालक, पैकेजिंग मेटेरियल वाले, ढाबे वाले और होटल वाले जुड़े होते हैं। 

इतना ही नहीं विभिन्न वैज्ञानिक शोध भी हिमाचल प्रदेश में सेब बागवानी के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से आ रही चुनौतियों का खुलासा कर चुके हैं हिमाचल प्रदेश में सेब के बागीचों के अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों की ओर शिफ्ट होने को लेकर हुए शोध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। प्लस वन जनरल में छपे शोध में भारत, कनाडा और जापान के वैज्ञानिकों ने पाया है कि जलवायु परिवर्तन और मौसम में आ रहे बदलावों की वजह से सेब बागवानी बड़ी तिव्र गति से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों की ओर शिफ्ट हो रही है। जिससे कम उंचाई वाले क्षेत्रों में सेब बागवानी मुश्किल हो गई है।
शोध के अनुसार हिमाचल प्रदेश में जहां 1980 के दशक में सेब बागवानी 1200 से 1500 मीटर तक की उंचाई वाले क्षेत्रों में होती थीए वो वर्ष 2000 तक 1500 से 2000 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों और वर्ष 2014 तक यह 3500 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक पहुंच गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह इसलिए हुआ है क्योंकि अब उंचाई वाले क्षेत्रों के मौसम में बदलाव की वजह से वो बागवानी के लिए अनुकूल हो गया है। जबकि कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तापमान की बढ़ोतरी की वजह से वहां पर सेब बागवानी के लिए उचित चिलिंग हावर पूरे नहीं हो पा रहे हैं।

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