हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा “वानिकी क्रियाओं में जैव-उर्वरकों और जैव-कीटनाशकों के अनुप्रयोग” पर अन्य हितधारकों के लिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित तीन दिवसीय (14-16, दिसम्बर 2022) प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, सेंट बीडस महाविद्यालय , शिमला के शौधार्थी एवं विद्यार्थी, पुजारली एवं रझाना ग्राम पंचायत के सदस्य एवं प्रगतिशील किसान, सामाजिक कार्यकर्ता, चिकित्सा अधिकारी, प्राध्यापकों एवं अध्यापकों ने भाग लिया ।
डॉ. संदीप शर्मा, निदेशक, हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने मुख्य-अतिथि तथा प्रशिक्षण में भाग ले रहे प्रतिभागियों का स्वागत तथा अभिनंदन किया तथा संस्थान द्वारा चलाई जा रही वानिकी अनुसंधान गतिविधियों के बारे में जानकारी दी तथा संस्थान द्वारा चलाई जा रही वानिकी अनुसंधान परियोजनाओं के संचालन हेतु हिमाचल प्रदेश वन विभाग
द्वारा प्रदान की जा रही सहायता एवं सहयोग हेतु प्रधान मुख्य अरण्यपाल तथा वन बल प्रमुख का धय्न्वाद किया । डॉ॰ शर्मा ने किसानों को खेतों में कंपोस्ट एवं वर्मी कंपोस्ट तैयार करने एवं इसके फ़ायदों के बारे में जानकारी प्रदान की ।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ श्री अजय श्रीवास्तव, प्रधान मुख्य अरण्यपाल तथा वन बल प्रमुख, वन विभाग हिमाचल प्रदेश ने किया । अपने उद्घाटन भाषण में प्रधान मुख्य वन संरक्षक- सह-वन बल प्रमुख, हिमाचल प्रदेश ने बताया कि जैविक खेती को लागू करने के लिए सरकार द्वारा बहुत जोर दिया जा रहा है। कीटनाशकों के प्रयोग की बात विभिन्न मंचों पर हो रही है और सरकार भी स्थानीय उत्पादों की जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रही है लेकिन परिणाम इतने उत्साहजनक नहीं हैं क्योंकि इसका उत्पादन पर व्यापक प्रभाव देखा जा रहा है । इसलिए, अनुसंधान संस्थानों को एक तरफ रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है और उत्पादन के मुद्दे को ध्यान में रखना है ।
डॉ॰ पवन कुमार, वैज्ञानिक-ई, प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक ने बताया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा चलाई हा रही इस प्रतिष्ठित योजना के अंतर्गत वन एवं पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर विशेष रूप से तैयार किए गए कई अल्पकालिक पाठ्यक्रम, अध्ययन दौरे, कार्यशालाएं तथा सेमिनार विभिन्न हितधारकों के लिए आयोजित किए जाते हैं। जिसमें वानिकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि, शैक्षिक संस्थानों के छात्र, प्रकृति क्लब/इको-क्लब, पंचायतों के निर्वाचित जनप्रतिनिधि, बैंकिंग संस्थानों के कर्मचारी, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रेस और मीडिया के लोग आदि शामिल हो सकते हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देशय अन्य हितधारकों को जैव उर्वरकों एवं जैव कीटनाशकों का उपयोग कर जैविक खेती के प्रति जागरूकता पैदा करना है ।
डॉ. पवन ने यह भी बताया की रासयानिक कीटनाशकों के लगातार इस्तेमाल से मृदा की उर्वरकता शक्ति समाप्त हो रही है, इसके विपरीत जैव कीटनाशक मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि करते हैं और मिट्टी में पोषक तत्वों की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। उन्होने नर्सरी में उगाये जाने वाले स्थानीय पौधों में जैव उर्वरक एवं जैव कीटनाशकों के महत्तव के बारे में बताया की जहाँ एक तरफ जैव उर्वरक पौधों के विकास में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते हैं वहीं दूसरी और जैव कीटनाशकों के उपयोग से पौधों को हानिकारक कीटों से बचाया जा सकता है । उन्होने प्रतिभागियों को रासायनिक उर्वरकों का कम से कम इस्तेमाल करने करने तथा जैव उर्वरकों एवं जैव कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा देने पर ज़ोर डाला । डॉ. पवन ने बताया की इस आयोजन के दौरान वानिकी तथा कृषि विषय के विषय-विशेषज्ञ प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग ले रहे प्रतिभागियों का मार्गदर्शन करेंगे, जिससे प्रतिभागी अवश्य ही लाभान्वित होंगे ।
जैव उर्वरक और कीटनाशक प्रकृति और पर्यावरण हितैषी : डॉ॰ पवन
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