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अदानी कंपनी के खिलाफ आंदोलन पर क्यों उतरे हैं हिमाचल के बागवान

जिस समय बागवानों को अपने सेब के बागानों या मंडियों में होना चाहिए उस समय हिमाचल के सेब बागवान आंदोलन पर उतारू हैं। पिछले डेढ माह से आंदोलन कर रहे बागवानों ने पहले सरकार की नीतियों और अब अदानों कंपनी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। 25 अगस्त को बागवानों ने अदानी कंपनी के तीन स्टोर्स पर दिनभर आंदोलन किया। अब बागवानों ने अदानी कंपनी को एक सप्ताह के भीतर सेब की दरों को पुनः निर्धारित करने का अल्टीमेेटम दिया है। यदि कंपनी ऐसा नहीं करती है तो संयुक्त किसान मंच ने अदानी कंपनी के खिलाफ मोर्चा खोलने की बात कही है। मोर्चा के पदाधिकारियों का कहना है कि यदि कंपनी दरों को युक्ति संगत नहीं बनाती है तो वे कंपनी में सेब को आने तो देंगे पर इसके बाद इन्हें बाहर नहीं निकालने देंगे। दरअसल इससे पहले बागवानों ने जीएसटी की दरों और पैकेजिंग मेटेरियल में बढ़ोतरी को लेकर सरकार के खिलाफ सचिवालय का घेराव किया था। इसके बाद बागवानों ने जेल भरो आंदोलन किया और एफआईआर तक भी हुई। इन सबके बीच में सरकार ने बागवानों के आंदोलन को देखते हुए सेब के दामों को तय करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन किया। लेकिन प्रदेश में सेब बागवानी से जुड़ी बड़ी कंपनी अदानी ने हाईपावर कमेटी के गठन वाले दिन ही सेब खरीद के दाम जारी कर दिए। जिससे बागवान भड़क गए और उन्होंने अब कंपनी के खिलाफ आंदोलन करने पर उतारू हैं। सेब बागवानों ने अब वीरवार को अदानी एग्रोफ्रेश के शिमला के तीन स्थानों मेंदहली, बीथल और सैंज के स्टोर्स का घेराव किया।
सेब बागवानी से जुडे़ 30 संगठनों को मिलाकर बने संयुक्त किसान मंच के अध्यक्ष हरीश चौहान ने बताया कि कंपनियां बागवानों और सरकार को गुमराह कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अदानी एग्रोफ्रेश हिमाचल प्रदेश में सेब की सबसे अधिक खरीद करने वाली कंपनियों में से एक है और अदानी की ओर से जारी किए गए दामों का बाजार में चल रहे दामों पर गहरा असर पड़ता है। सरकार की ओर से सेब के दामों को तय करने के लिए कमेटी का गठन किया गया था लेकिन अदानी कंपनी ने अपने दाम बिना कमेटी की अप्रुवल के जारी कर दिए। इसके अलावा कमेटी की ओर से बुलाई गई बैठक में भी अदानी कंपनी के बड़े अधिकारी चर्चा के लिए नहीं आए और वे सरकार को हल्के में ले रहे हैं।
यंग एडं यूनाईटेड प्रोग्रेसिव ऐसोसिएशन के महासचिव प्रशांत सेहटा ने बताया कि अदानी कंपनी फल के रंग और आकार के अनुसार उन्हें कई ग्रेड्स में बांटकर अलग-अलग रेट्स पर खरीदता है। इस बार भी अदानी एग्री फ्रेश ने राज्य के सेब बागवानों से करीब पच्चीस हजार मीट्रिक टन सेब खरीदने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा कि इस साल अदानी एग्री फ्रेश ने जो सेब के रेट्स खोले हैं वह बीते साल की तुलना में 12 से पंद्रह फीसदी कम है। पिछले साल कंपनी ने 85 रुपए प्रति किलो तक उच्चतम दाम रखे थे, वहीं इस बार यह रेट 76 रुपए है। जबकि बीते बरस की तुलना में इस बार सेब उत्पादन लागत में लगभग 30 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। प्रशांत कहते हैं कि कंपनी द्वारा सेब के रेट में भी इसी तर्ज़ पर वृद्धि की जानी चाहिए थी।
आंदोलन कर रहे बागवानों की मानें तो इस बार मौसमी बेरुखी की वजह से फसल के रंग और आकार में अन्य वर्षों की तुलना में कमी रह रही है। जिसका अर्थ है कि बागवानों के पास छोटा आकार और कम रंगत का सेब अधिक है। ऐसे में अदानी जो रंग के आधार पर सेब खरीदता है तो उसके कम दाम मिलना तय है।
प्रशांत सेहटा कहते हैं कि अब अगर हम ओपन मार्केट की बात करें तो सबसे पहले 60 से 100 फीसदी रंग वाले सेब की 25 किलो की पेटी लार्ज से लेकर पिट्टू आकार तक रेट में 1700 से 2300 तक बिक रही है। जिसका औसत मूल्य 68 रुपए से 92 रुपए रह रहा है। अगर पैकिंग का खर्चा हटा दिया जाए तब भी औसत रेट 62 से 85 रुपए तक मिल रहा है। इसी आधार पर अगर हम अदानी एग्री फ्रेश के रेट का औसत लें तो यह दोनो ग्रेड्स को मिलाकर 60 से 70 रुपए के आस पास रह रहा है।
सेब बहुल इलाके रतनाड़ी के सेब बागवान आशुतोष चौहान कहते हैं कि अदानी कंपनी के रेट खुलने से मार्केट पर बहुत बुरा असर होता है। जैसे ही कंपनी ने इस बार 13 अगस्त को रेट खोले उसके अगले दिन से मार्केट में सेब के दामों 400 से 500 रूपये गिर गए। जबकि पिछले वर्ष यह गिरावट 1 हजार रूपये तक थी। उन्होंने कहा कि सेब के दामों में एकरूपता होनी चाहिए और प्राइवेट कंपनियों की ओर से तय किए जा रहे मनमाने दामों को सरकार की ओर से रेग्युलेट किया जाना चाहिए।
सेब के दामों को तय करने के लिए बीते मंगलवार को नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति की अध्यक्षता में बनी हाई पावर कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में प्रदेश में बड़े स्तर पर सेब की खरीद करने वाली 18 कंपनियों को बुलाया गया था लेकिन इसमें 18 में से केवल 8 कंपनियां ही आई।
संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक संजय चौहान ने कहा कि कंपनियां इस कमेटी और सरकार के निर्देशों को गंभीरता से नहीं देखती है। इसलिए इसमें ज्यादातर कंपनियों के प्रतिनिधि नहीं आए। उन्होंने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान जब अदानी जैसी बड़ी कंपनियों के साथ किए गए करार और नियम व शर्तों को मांगा गया तो न ही तो सरकार और न ही कंपनियों की ओर से कोई एमओयू नहीं दिखाया गया। उन्होंने कहा कि कोई नियम कानून न होने की वजह से कंपनियां अपनी मनमर्जी कर रही है। अब हम लोग कंपनियों की मनमर्जी को नहीं मानेंगे और अपने आंदोलन को और अधिक तेज करेंगे।

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