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गिरीपार क्षेत्र के साढ़े तीन लाख लोगों की अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित करने की मांग

हिमाचल और उतराखंड को दो हिस्सों में बांटने वाली टौंस नदी के आर-पार भाषायी और सांस्कृतिक कई समानताएं हैं। लेकिन विकास की दृष्टी में हिमाचल का गिरीपार का क्षेत्र उतराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र से कई गुणा पिछड़ा हुआ माना जाता है। जौनसार बावर क्षेत्र में शिक्षा, रोजगार, आधारभूत ढांचा, यातायात और लोगों की आर्थिक स्थिति गिरीपार के लोगों के मुकाबले बहुत अच्छी है। जबकि एक समय में यह दोनों क्षेत्र सिरमौर रियासत के अधिन आते थे। लेकिन एक क्षेत्र 55 वर्ष पहले अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित होने के बाद विकास की राह पर चल पड़ा और दूसरा पिछड़ गया। इसी आर्थिक और विकास के विकास के पिछड़ेपन से छुटकारा पाने के लिए गिरीपार क्षेत्र के साढ़े तीन लाख हाटी समुदाय के लोग अपने आप को जनजातीय घोषित करवाने के लिए पिछले 55 वर्षाें से संघर्ष कर रहे हैं। हाटी समुदाय के लोगों का रहन-सहन, खान-पान, पहनावा, रीति रिवाज और संस्कृतिक जौनसार बावर क्षेत्र के जौनसारी समुदाय से मिलती है। इसलिए ये लोग भी अपने आप को जनजाति घोषित करवाने के लिए पांच दशकों से शांतिपूर्वक ढंग से मांग उठाते आ रहे हैं।  
केंद्रीय हाटी समिति के अध्यक्ष डॉ अमी चंद कमल ने बताया कि हाटी समुदाय में गिरीपार क्षेत्र की 164 पंचायतों की 14 जातियां आती हैं। हाटी समुदाय टौंस नदी के पार जौनसार बावर क्षेत्र के लोगों से पूरी तरह मेल खाता है लेकिन हमें अभी तक जनजाति का दर्जा नहीं दिया गया है। हमें जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो इससे क्षेत्र में विकास के कार्यों को गति मिलेगी साथ ही हमारे समुदाय के लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी खुलेंगे।
केंद्रीय हाटी समिति की शिमला इकाई के मुख्य प्रवक्ता डॉ रमेश सिंगटा ने कहा कि हाटी समुदाय बहुत सहनशील समुदाय है और लंबे समय से शांतिपूर्वक अपनी मांग को रख रहा है। लेकिन अब हाटी समुदाय ने फैसला लिया है कि हक नहीं तो वोट नहीं। उन्होंने कहा कि हमें इस सरकार से बहुत उम्मीद है कि हमें जनजातिय का दर्जा मिल जाएगा। डॉ सिंगटा बताते हैं कि हमें यह दर्जा मिलता है तो हमारे क्षेत्र में विकास को गति मिलेगी, अच्छे स्कूल, स्वास्थ्य सुविधांए, अच्छी सड़कें मिलेगी जिसकी वजह से क्षेत्र के लोगों की आर्थिकी और जीवन स्तर में बढ़ोतरी होगी।
गौर कि हिमाचल प्रदेश में अभी तक 10 जातियों, भोट, गद्दी, गुजर, लाहौला, स्वांगला, बेडा, किन्नौरा, लांबा को जनजाति का दर्जा दिया गया है। वहीं यदि बड़े स्तर पर क्षेत्र को जनजातिय घोषित किए जाने की बात की जाए तिब्बत बोर्ड और लेह के साथ सटे जिला लाहौल-स्पीति, तिब्बत बोर्डर के साथ सटा पूरा किन्नौर जिला और जम्मू और कश्मिर के साथ सटे चंबा जिले के भरमौर पांगी क्षेत्र को जनजातिय क्षेत्र घोषित किया गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश में जनजातिय लोगों की कुल जनसंख्या 392126 है जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 5.7 फीसदी है। जनजातिय क्षेत्र की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश के कुल क्षेत्र 55673 वर्ग किलोमीटर में से 23655 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आता है जो कुल क्षेत्रफल का 42.49 फीसदी है।
हाटी समुदाय की केंद्रीय हाटी समिति का कहना है कि अप्रैल माह में मुख्यमंत्री की अगुवाई में एक दल केंद्रीय गृह मंत्री से मिला था। जिसमें गृहमंत्री ने कहा था कि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की ओर से हाटी समुदाय को जनजाति के तौर पर पंजीकृत कर लिया गया है और अब जल्द ही केंद्र सरकार इस क्षेत्र के अनुसूचित जनजातिय क्षेत्र घोषित करेगी।
क्या है पूरा मामला
गिरीपार क्षेत्र के हाटी समुदाय के लोगों की ओर से जनजाति घोषित करने की मांग हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्य बनने से पहले ही 1967 से ही उठ रही थी लेकिन 1983 में इसके लिए केंद्रीय हाटी समिति को पंजीकृत किया गया और इसके बाद इसकी मांग पुरजोर तरीके से उठने लगी। इसके बाद कई सरकारें आई और सभी सरकारों की ओर से हाटी समुदाय को जनजातीय घोषित करने का समर्थन मिलता रहा। वर्ष 2009 में भाजपा की ओर से हाटी समुदाय को जनजातीय घोषित करने के मामले को अपने घोषणापत्र में भी शामिल किया गया था। इसके बाद वर्ष 2014 में वर्तमान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने सिरमौर जिला के दौरे के दौरान हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिलाने की घोषणा की थी। वहीं पिछले चार वर्षों में इस मामले में तेजी देखी गई और केंद्रीय हाटी समिति, स्थानीय सांसद और मुख्यमंत्री की अगुआई में कई दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री से मिले और इस मामले में तेजी लाने की मांग समय-समय पर उठाते रहे। इसी का नतीजा है कि अब गिरीपार के क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की जल्द ही घोषणा होने की आस हाटी समुदाय के लोग लगाए बैठे हैं। हाटी समुदाय लोग आस लगाए बैठें हैं कि गिरीपार क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित करने के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं और संसद के इस मानसून सत्र में उन्हें यह दर्जा दिया जा सकता है। 

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