उत्तम खेती, मध्यम व्यापार, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान यानि खेती का काम सेबसे उत्तम है और व्यापार मध्यम दर्ज पर आता है और नाकरी करना नीच माना जाता है। इस कहावत को चरितार्थ करते हुए हिमाचल के कृषि वैज्ञानिक डाॅ विक्रम शर्मा खेती-बाड़ी को सबसे उत्तम बताते हुए किसानों को वाणिज्यिक खेती की ओर प्रोत्साहित कर रहे हैं। डाॅ विक्रम शर्मा पिछले 20 वर्षाें से खेती-बाड़ी से जुड़े हैं। हिमाचल में काॅफी की खेती के जनक माने जाने वाले डाॅ विक्रम अभी तक हिमाचल और उत्तराखंड के किसानों में 3 लाख से अधिक काॅफी के पौधे निशुल्क बांट चुके हैं। इतना ही नहीं डाॅ विक्रम काॅफी के अलावा, निचले क्षेत्रों में उगाया जाने वाला सेब, कीवी, ऐवाकाडो, पीस्ता और हींग की खेती को बढ़ावा देने के लिए विदेशों से मंहगे दामों में बीज मंगवाकर पहले तो इनकी पौधे अपने यहां तैयार करते हैं और इसके बाद इसे निशुल्क किसान-बागवानों में बांट देते हैं। डाॅ विक्रम इन सभी पौधों को बिना किसी रसायन के तैयार करते हैं और इसमें प्राकृतिक खाद का प्रयोग करते हैं। उनका कहना है कि प्रकृति में सब खनीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं इसलिए किसानों को मंहगे कीटनाशकों और रसायनिक खादों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
काॅफी के उत्पादन के लिए बेहतर है हिमाचल के पंाच जिले
डाॅ विक्रम ने द बैटर इंडिया को बताया कि कि हिमाचल में काॅफी का उत्पादन बड़े अच्छे से किया जाता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने चिकमंगलूर से काफी के बीज लाए थे और इसके बाद इन्हें अपने खेतों में उगाया था। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने खेतों में काॅफी के 5 दर्जन से अधिक बड़े पौधे उगाए हैं जिनसे अच्छी पैदावार हो रही है। इसके अलावा वे हर साल काफी के हजारों पौधों की पौध तैयार कर इन्हें किसानों को बांट देते हैं। उनका कहना है कि हिमाचल के पांच जिलों, मंडी, कुल्लू, हमीरपुर, बिलासपुर और कांगड़ा में काॅफी का अच्छा उत्पादन लेकर किसान सशक्त बन सकते हैं। उन्होंने बताया कि हिमाचल में किसानों को काॅफी की चंद्रगिरी और एस-9 किस्में बांटी जा रही हैं क्यांेकि ये किस्में यहां के वातावरण के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं। उन्होंने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में उगी हुई काॅफी मंे एक अलग सी महक है जो इसे अन्य काॅफी से अलग बनाती है। उन्होंने बताया कि इसके पिछे कारण यहां की जलवायु में आने वाले उतार चढ़ाव हो सकते हैं।
भारत में हींग की खेती को दे रहे बढ़ावा
खेती-बाड़ी में नीत नए दिन नए-नए प्रयोग करने वाले डाॅ विक्रम का कहना है कि विश्व में हींग के कुल उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा भारत में प्रयोग होता है। लेकिन भारत में हींग की खेती नहीं की जाती। भारत में सीरिया, रूस, कजाकिस्तान, अफगानिस्तान और तुर्की से हींग आयात किया जाता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में हींग की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विदेश से हींग क बीज मंगाया गया है और इससे 25 हजार पौधे तैयार कर किसानों को बांटे गए हैं। उन्होंने बताया कि हींग की खेती के लिए हिमाचल के जनजातिय जिलों किन्नौर, लाहौल-स्पीति और चंबा का वातावरण बिल्कुल अनुकुल है और किसानों को ट्रायल के तौर पर हींग उगाने के लिए पौधे भी वितरित किए गए हैं। डाॅ विक्रम के इन प्रयासों के चलते हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी हींग की खेती को हिमाचल में शुरू किया है।
पीस्ता, ऐवाकाडो, अंजीर और दालचीनी के पौधों को भी किसानों तक पहुंचाया
पीस्ता और ऐवाकाडो जैसे मंहगे ड्राई फ्रूट्स और फलों की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग रहती है। ऐसे में हिमालयी राज्यों के किसानांे की आर्थिकी में बढ़ावा हो इसके लिए डाॅ विक्रम किसानों को पीस्ता और ऐवाकाडो के पौधे भी मुहैया करवा रहे हैं। डाॅ विक्रम का कहना है कि हिमाचल की धरती में पीस्ता, ऐवाकाडो, अंजीर और दालचीनी के पौधों को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने खेतों में इन सभी पौधों का सफलतापूर्वक उगाया है और इनका सही उत्पादन लेकर अन्य किसानों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहा हूं।
डाॅ विक्रम किसानों की आय को बढ़ाने के लिए उन्हें कृषि संबंधी आवश्यक सूचनाएं पहुंचाने का काम भी करते हैं। डाॅ विक्रम का कहना है कि हिमाचल में जंगली जानवरों खासकर बंदरों की वजह से लोग खेती-बाड़ी छोड रहे हैं। ऐसे में किसानों को खेती की ओर लाना एक चुनौती है, उनका कहना है कि वाणिज्यिक खेती करने से किसानों को कम मेहनत में उचित लाभ तो मिलेगा ही साथ ही दालचीनी, पीस्ता और काॅफी को उगाने से जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान की चींता भी किसानों का नहीं सताऐगी। इसलिए किसानों को परंपरागत खेती से हरकर वाणिज्यिक खेती की ओर रूख करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि वे हर साल पंडित दीन दयाल उपाध्याय के जन्मदिवस पर काॅफी सहित अन्य पौधों का वितरण करते हैं।
हींग, काॅफी और ऐवाकाडो के तीन लाख से अधिक पौधे निशुल्क बांट चुके हैं डाॅ विक्रम
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