‘सुपर फूड’ आजकल ये शब्द बहुत चर्चाओं में है। दरअसल सुपर फूड लंबे समय से उपेक्षा झेल रहे मोटे अनाजों को कहा जाता है। मोटे अनाजों में मुख्यतः कोदा, बाजरा, कांगणी, चीणा, कोदो, कुटकी और सांवा आता है। 4-5 दशक पहले तक हमारे आहार के केंद्र में रहे ये मोटे पोषक अनाज हरित क्रांति के बाद हमारी आहार की थाली से गायब होते गए। अब एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन पोषक मोटे अनाजों के महत्व को समझते हुए इन्हें बढ़ावा देने के प्रयास तेज किए गए हैं। विश्व खाद्य संगठन की ओर से दुनिया भर में वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया गया है। इसी के चलते भारत में भी पोषक मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए एक वृहद कार्ययोजना के तहत काम किया जा रहा है ताकि इन पुराने पोषक अनाजों को न सिर्फ भविष्य की पीढ़ियों के लिए बचाया जाए, बल्कि इन्हें मुख्य आहार का हिस्सा भी बनाया जा सके।
विशेषज्ञों की मानें तो ये मोटे पोषक अनाज न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं बल्कि ये खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन का कृषि पर असर, सिंचाई की समस्या, कृषि क्षेत्र के लिए बढ़ती मजदूरों की मांग और मरूस्थलिकरण का भी एक सशक्त विकल्प है। मिलेट मैन के नाम से विख्यात डॉ. खादर वली का कहना है कि भारत में मरूस्थलीकरण तेजी से बढ़ रहा है, मौजूदा आंकड़ों के अनुसार भारत में 29.76 प्रतिशत भूमि बंजर हो गई है। इसके साथ ही देश के सामने पोषणयुक्त खाद्यान्न की समस्या भी मुंह उठाए खड़ी है। इन सभी समस्याओं के हल के लिए मोटे अनाजों की खेती सर्वोत्तम है। डॉ. वली का कहना है कि अगर हमें रोगमुक्त जीवन जीना है तो मोटे अनाजों को उगाना और उनका उपभोग करना जरूरी है। मोटे अनाजों की ओर लौटने पर हमारी सेहत संबंधी दिक्कतें स्वतः खत्म हो जाएंगी।
पर्यावरण और कृषि क्षेत्र के थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में 71 प्रतिशत भारतीयों के स्वस्थ आहार न लेने का हवाला दिया गया है। वहीं वैश्विक औसत के आंकड़े की बात करें तो यह 42 प्रतिशत है। ऐसे में स्पष्ट है कि भारतीयों की स्वस्थ और पोषणयुक्त आहार की जरूरत को मोटे पोषक अनाजों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है।
हिमालयन राज्यों में जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर कृषि क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश की ओर से भी जलवायु परिवर्तन के असर से पार पाने के लिए पर्यावरण हितैषी मौटे अनाजों की खेती पर बल दिया जा रहा है। गौर रहे कि हिमाचल प्रदेश में 53 फीसदी महिलाओं और युवतियों तथा 50 फीसदी गर्भवतियों में एनीमिया की समस्या देखी गई है। इसके अलावा 5 साल से कम उम्र के 53 फीसदी बच्चों में खून की कमी और 13.7 फीसदी बच्चे कुपोषित पाए गए हैं। इन समस्याओं से निपटने में मोटे अनाज अहम भूमिका निभा सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश सरकार के कृषि विभाग की ओर से पोषक अनाजों को बढ़ावा देने के लिए साल भर की कार्ययोजना तैयार की गई है। मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश स्तर पर कृषि अधिकारियों, वैज्ञानिकों, मोटे अनाजों को उगाने वाले किसानों और अन्य विशेषज्ञों के एक कार्यदल का गठन किया गया है। यह कार्यदल मोटे अनाजों के प्रति किसानों और अन्य हितधारकों को जागरूक करने का काम कर रहा है। इसके अलावा किसानों और उपभोक्ताओं के बीच मोटे पोषक अनाजों के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए राज्य स्तर, जिला स्तर और ब्लॉक स्तर पर किसान मेलों, फूड फेस्टिवल, किसान संवाद व संगोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश भूमि रिकॉर्ड 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में हिमाचल प्रदेश में 4060 मीट्रिक टन मोटे अनाजों का उत्पादन हुआ था। इस रिपोर्ट के अनुसार में प्रदेश में सबसे अधिक रागी का 1823 मीट्रिक टन उत्पादन हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि 1970 में हिमाचल प्रदेश में 20 फीसदी भूमि पर मोटे अनाजों की खेती की जाती थी जो अब घटकर केवल 6 फीसदी तक रह गई है। इसलिए कृषि विभाग की ओर से मोटे अनाजों के क्षेत्र को बढ़ाकर इसकी पैदावार में बढ़ोतरी करने के लिए एक वृहद योजना पर चरणबद्ध तरीके से काम किया जा रहा है।
मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए विश्विद्यालयों की ओर से भी काम किया जा रहा है। डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कुलपति प्रो़ राजेश्वर सिंह चंदेल ने कहा कि विश्वविद्यालय ने राज्य में मिलेट्स के प्रचार के लिए विभिन्न गतिविधियों पर एक गतिविधि कैलेंडर बनाया है क्योंकि ये फसलें विश्व की खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने इन सुपरफूड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों में एक मिलेट्स आधारित व्यंजन शामिल करने का निर्णय लिया है।
हिमाचल प्रदेश में पोषक मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए कार्यदल के अध्यक्ष और कृषि विभाग में संयुक्त कृषि निदेशक डॉ रघबीर सिंह का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में मोटे अनाजों की खेती अभी भी कई जिलों में बची हुई है। प्रदेश में ऐसे कई लोग हैं जो इन अनाजों को संजोए रखने के साथ बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। विभाग की ओर से ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें प्रोत्साहित करने के साथ प्रदेश की जलवायु के अनुकूल पोषक अनाजों की जिलावार पहचान व इनके स्थानीय तथा वैज्ञानिक नामों का डेटाबेस तैयार करने का काम किया जा रहा है।
मोटे अनाजों को बचाने वाले और पर्वतीय टिकाऊ खेती अभियान के सदस्य नेकराम का कहना है कि जैसे-जैसे लोगों का जीवन स्तर और रहन सहन बदल रहा है, उसके साथ ही लोगों में कई तरह की बीमारियां भी बढ़ रही हैं। उन्होंने बताया कि हमारे गलत खान-पान की वजह से डायबिटिज, कैंसर, एसीडिटी समेत कई अन्य तरह की बीमारियां हो रही हैं। यदि व्यक्ति मोटे अनाजों को अपने रोजाना के भोजन में जोड़ दे तो कई तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है।
स्थायी खाद्य प्रणाली और कृषि क्षेत्र के अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ आशीष गुप्ता का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोटे अनाजों को बढ़ावा देने पर बल दिया जा रहा है और इसमें हिमाचल भी अब अच्छा काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि इन मोटे अनाजों को कम संसाधनों, कम मेहनत और कम पानी में अच्छे से उगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अब लोगों में मोटे अनाजों के लाभों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है इसलिए अब इन मोटे अनाजों को बाजार में मांग बढ़ रही है।
हिमाचल प्रदेश के मुख्य पोषक अनाज
कोदा
स्थानीय नाम – कोदा, रागी, मंडुआ, मंडल
औषधीय गुण – रक्त को शुद्ध करता है, प्रतिरोध शक्ति में सुधार, एनीमिया, मधुमेह, कब्ज से राहत, अच्छी नींद में सहायक, अस्थमा, गुर्दे की समस्यों में लाभकारी, प्रोस्टेट, रक्त कैंसर, थायराइड, गले, अग्नाशय या यकृत के कैंसर से सबंधित समस्याओं से छुटकारा दिलाने में सहायक है।
चौलाई
स्थानीय नाम – चौलाई, राजगिरि, रामदाना, सलियारा, सयूल
औषधीय गुण- दांतों के रोग, कंठ की बीमारियों, दस्त, ल्यूकोरिया, घाव, रक्त विकारों के निदान में सहायक है। इसमें विटामिन ए, बी, सी, आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में मौजूद है।
सांवा
स्थानीय नाम – सौंक, सांवा, जिंगोरा
औषधीय गुण – इसमें फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है। यह मधुमेह और कब्ज से छुटकारा दिलाने, यकृत, गुर्दे, पित्ताशय की थैली की सफाई, पीलिया, अंडाशय और गर्भाशय के कैंसर को कम करने में सहायक होता है।
कांगणी
स्थानीय नाम – कांगणी, कौणी
औषधीय गुण – यह एंटीऑक्सीडेंट है। इसमें अधिक फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस और विटामिन होते हैं। यह बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए अच्छा होता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में मोटे अनाजों का इतिहास 5 हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है और यहां की उर्वर भूमि कोदा, कांगणी, सांवा, चीणा और चौलाई जैसे अनाजों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। इसलिए अब समय की मांग को देखते हुए हिमाचल के किसानों को चाहिए कि वे एक बार फिर इन भूले बिसरे अनाजों को अपने खेतों में उगाकर न सिर्फ अपनी और उपभोक्ताओं की सेहत में सुधार ला सकते हैं, बल्कि रसायनों से दूषित हो चुकी मिट्टी को भी पुनर्जीवित करने का काम करेंगे।